‘‘माया मरी न मन मरा, मर-मर गये शरीर। आशा, तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।’’ कान में सुनने की बढ़िया विलायती मशीन, बेनूर आँखों पर शानदार चश्मा। उम्र चौरानबे साल। सभी पर अपने दकियानूसी विचार थोपने की ललक। घर में सभी थे बेटे-पोते, पड़-पोते, लेकिन कोई भी बुढ़ऊ के उपदेश सुनने को राजी नही। अब अपना समय कैसे गुजारें। किसी भी संस्था में जायें तो अध्यक्ष बनने का इरादा जाहिर करना उनकी हॉबी थी। आज इसी पर एक चर्चा करता हूँ। आखिर मैं भी तो इन्हीं वरिष्ठ नागरिक महोदय के शहर का हूँ। फिर अपने ही ब्लॉग पर तो लिख रहा हूँ। किसी को पसन्द आये या न आये। क्या फर्क पड़ता है? मेरे छोटे से शहर में भी एक वरिष्ठ नागरिक परिषद् है। इसके अध्यक्ष इस क्षेत्र के जाने-माने रईस हैं। ये पिछले 3 वर्षों से अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्जा जमाये हुए हैं। एक वर्ष के अन्तराल पर जब भी चुनाव होते थे। ये पहले से ही ढिंढोरा पीटना शुरू कर देते थे कि मैं अध्यक्ष तभी बनूँगा जब मुझे सब लोग चाहेंगे। यदि एक व्यक्ति ने भी विरोध किया तो मुझे अध्यक्ष नही बनना है। इस बार के चुनाव में भी यही नाटक चलता रहा। मैंने मा. अध्यक्ष जी को सम्बोधित करके कहा- ‘‘बाबू जी आपको अध्यक्ष कौन बना रहा है? अब किसी और को मौका दीजिए। आपकी क्षत्र-छाया की हमें आज भी बहुत जरूरत है। आप तो अब संस्था के संरक्षक नही महासंरक्षक बन जाइए।’’ बाबू जी के दिल में मेरी बातें तीर जैसी चुभ गयीं। परन्तु वह बोले कुछ नही। अब अध्यक्ष पद के लिए नाम प्रस्तुत हुए। एक व्यक्ति का नाम अध्यक्ष पद के लिए आया, तो उस पर सहमति बनने ही वाली थी। तभी बाबू जी बोले- ‘‘ठहरो! अभी और नाम भी आने दो।’’ तभी उनके एक चमचे ने बाबू जी का इशारा पाकर- उनका नाम प्रस्तुत कर दिया। वोटिंग की नौबत आते देख, बाबू जी ने अध्यक्ष पद के पहले दावेदार को अपने पास बुलाया और न जाने उसके कान में क्या मन्त्र फूँक दिया। वह सदन में खड़ा होकर बोला- ‘‘अगर बाबू जी अध्यक्ष बनना चाहते हैं तो मैं अपना नाम वापिस ले लूँगा।’’ बाबू जी तो चाहते ही यही थे। फिर से अध्यक्ष पद पर अपना कब्जा बरकरार कर लिया। सदन में कई लोगों ने उठ कर कहा कि बाबू जी आप तो यह कहते थे कि अगर एक भी व्यक्ति मेरे खिलाफ होगा तो मैं अध्यक्ष नही बनना चाहूँगा। परन्तु बाबू जी बड़ी सख्त जान थे। अपने फन के माहिर थे। यह तो रही गत वर्ष की बात! इस वर्ष तो और भी मजेदार कहानी रही! इन महोदय ने अपनी सोची समझी रणनीति के अनुसार उसे ही चुनाव अधिकारी घोषित कर दिया जो कि अध्यक्ष पद का सम्भावित प्रत्याशी था! अब तो राह और भी आसान हो गई और एक वर्ष के लिए फिर से अध्यक्ष की कुर्सी पर यह पदलोलुप विराजमान हो गये! ‘‘चौरानब्बे वर्ष की आयु में भी कुर्सी से चिपकने का ग़ज़ब का जुनून था उनमें! |
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Sunday, 2 May 2010
"चौरानब्बे वर्ष की आयु में भी कुर्सी से चिपकने का जुनून उनमें था।" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जब यह अपना ऊपर का टिकट कटवाये या इन क ऊपर का टिकट कटे तो यह कुर्सी भी इन के साथ ही भेज दे.....;) वेसे मिलते है ऎसे लोग भी
ReplyDeleteअफ़सोस तो ये है भाटिया साहब कि आजकल ऐसो के ऊपर के टिकिट भी जल्दी नहीं कटते, अपने हुशेन पेंटर को ही देख लीजिये !
ReplyDeletejunoon hoto aisaa.
ReplyDeletejunoon hoto aisaa.
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ReplyDeleteकुर्सी का नशा ही कुछ ऐसा होता है शायद.
ReplyDeleteअगले साल इनको इससे भी बड़ी कुर्सी पर बिठा देना , फिर ये वाली तो खली हो ही जाएगी।
ReplyDeleteकुछ लोगों का मोह मरते दम तक खत्म नही होता……………ये कुर्सी जो ना करवाये कम है।
ReplyDeleteसही बात है, जब तक ये लतियाए नहीं जाते, ये नहीं जाते कुर्सी छोड़कर.
ReplyDeleteये सब कुर्सी के नशे का प्रभाव है\ सही बात है नेताओं के टिकेट जल्दी नहीं कटते। मंयक जी राम राम और शुभकामनायें जून तक मेरी हाजरी कम ही रहेगी। शुभकामनायें
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब
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ReplyDeleteसही कहा है आपने ! ऐसा जूनून हर किसीमे होना चाहिए और ये आवश्यक भी है!
ReplyDeleteकुर्सी की नशा जब चढ़ता है तो फिर उतरता नहीं
ReplyDeleteएक बार हमरे साथ भी एही हुआ था.. हमरा उमर उस समय 24 साल था..अऊर हम एगो 56 साल का अदमी के साथ चुनाव में भिड़ गए थे.. दुनो गुट में हंगामा हुआ अऊर बात बिभाग के आयुक्त, जो सीनियर आई.ए.एस. थे के पास चला गया.. ऊ हमको बोलाए अऊर बोले कि आप सचिव हैं, ई सब कोई मानता है, बाकी सब को साथ लेकर चलिए. हम बोले, “ सर! बहुत परेसानी है, सचिव बनने में.. हमको सौख नहीं है. बताइए ई पोस्ट लेकर हमको क्या मिलेगा.” इसके बाद जो उनका जवाब था ऊ हमरा जिन्नगी भर का सबक बन गया. अऊर एही बात ऊ 94 साल के सज्जन पर भी लागू होता है.ऊ बोले, “आपकी उम्र अभी 24 साल है, और आपके संगठन में लोगों की एवरेज उम्र 48 से 50 के बीच. आप पूछ रहे हैं क्या मिलेगा इस पद से आपको? इस उम्र में अपने से दुगुने उम्र के लोगों का नेतृत्व पाने का नशा क्या कम बड़ा ईनाम है.” उनका ई बात सुनकर हम चुप हो गये. हमको याद आ गया पुराना राजा लोग का शेर के लाश के ऊपर गोड़ रखकर अऊर बंदूक लेकर फोटो खिंचाना. ऊ फोटो उनका सिकार से ज्यादा उनका नशा का देखावा होता था.. अऊर ई नशा त कोनो उमर नहीं देखता है, खास कर एक बार सवाद चख लेने के बाद...
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