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Friday, 31 July 2009
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के जन्म-दिवस पर विशेष
Thursday, 30 July 2009
‘‘परिभाषा’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Sunday, 26 July 2009
‘‘काश् हर परिवार में ऐसी श्रद्धा हो!’’ (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Friday, 24 July 2009
‘‘प्राचीन नन्दीश्वर महादेव’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Sunday, 19 July 2009
‘‘शारदा सागर जलाशय’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
जनाब ये किसी समुद्र का सीन नही है। यह है भारत नेपाल सीमा पर बना शारदा सागर जलाशय। यह दिल्ली से 320 किमी की दूरी पर उत्तराखण्ड के ऊधमसिंहनगर जिले के खटीमा से उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले तक एक बड़े हिस्से में फैला हुआ है। आज हम आपको उत्तराखण्ड के खटीमा से जिला पीलीभीत तक फैले इसी शारदासागर डाम की सैर पर ले चलते हैं। कुमाऊँ की पहाड़ियों से चल कर उत्तर प्रदेश के बड़े भूभाग को सिंचित करने वाली शारदा नहर के किनारे ही यह शारदा सागर बाँध है। यह लम्बाई में लगभग 30किमी तक फैला है और इसकी चैड़ाई 5 किमी के लगभग है। यह जलाशय भूमि की सतह से नीचे है। इसलिए इसके फटने तथा कटने की सम्भावना बिकुल नही है। खटीमा से नेपाल बार्डर की ओर जाने पर 12 किमी की दूरी पर यह प्रारम्भ हो जाता है। प्रतिवर्ष इस बाँध का मछली पकड़ने का ठेके की नीलामी करोड़ों रुपयों में होती है। इसके अरिक्ति इसमें से कई नहरें भी निकाली गयी हैं। जो कि खेती के सिंचन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अतः इसके किनारे पिकनिक मनाने का आनन्द ही अलग है। दो वर्ष पूर्व घर में अतिथि आये हुए थे इसलिए हमने भी सोचा कि इसी के किनारे पिकनिक मनाइ जाये। घर से खाना पॅक किया और जा पहुँचे शारदा सगर डाम पर। सबसे पहले शारदा सागर के नीचे ढलान वाले भू-भाग पर बनी चरवाहों की एक झोंपड़ी देखी तो उसने तो मन मोह ही लिया। ऐसी शीतल हवा तो घर के ए-सी व पंखे भी नही दे सकते। इसके बाद शारदा सागर का जायजा लिया। अब कुछ थकान सी हो आई थी, भूख भी कस कर लगी थी अतः मैदान में ही चादर बिछा कर आराम से भोजन किया। शारदा सागर की सीपेज से निकले स्वच्छ जल में महिलाओं को बर्तन सा करने में बड़ा आनन्द आया। वो जैसे ही जूठे बर्तन पानी में डुबोती वैसे ही सैकड़ों मछलियाँ बचा-खुचा खाना खाने के लिए लपक-लपक कर आ जाती थीं। थोड़ी देर के लिए इसी मैदान में विश्राम किया और फिर से काफिला घर की ओर प्रस्थान कर गया। |
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Thursday, 16 July 2009
दल-दल में कौन फँसेगा? (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोक-तन्त्र??? दल-दल में कौन फँसेगा??? |
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Tuesday, 14 July 2009
’’श्यामलाताल’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
यदि प्रकृति का वास्तविक स्वरूप देखना हो तो आपको इसके लिए सबसे पहले टनकपुर आना पड़ेगा। लेकिन कम से कम 3 दिन का समय इसक लिए आपको निकालना ही होगा। टनकपुर उत्तराखण्ड के चम्पावत जिले में स्थित है। यह कुआऊँ का प्रवेश द्वार है। यह दिल्ली से 350 किमी दूर है और यह बरेली से रेलवे की छोटी लाइन से जुड़ा हुआ है। टनकपुर पहुँयने पर आप सबसे पहले माता पूर्णागिरि के दर्शन करें। जो एक शक्ति-पीठ के नाम से जानी जाती है। यह टनकपुर से 25 किमी की दूरी पर पर्वत की चोटी पर है। आप श्रद्धा और प्रेम से माता के दर्शन करें। अगले दिन आप नेपाल में स्थित ब्रह्मदेव मण्डी जाकर सिद्धबाबा के दर्शन करें। कहा जाता है कि माता के दर्शन करने पर सिद्धबाबा के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। तीसरे दिन आप मनोहारी छवि और प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध श्यामलाताल पहुँच कर कुदरत के नजारों का आनन्द ले सकते हैं। यहाँ पर रामकृष्ण मठ द्वारा संचालित विवेकानन्द आश्रम है। जिसमें रामकृष्ण मिशन से जुड़े सन्त साधना करते हैं । वास्तव में यह मिशन का एक प्रशिक्षण केन्द्र है। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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Saturday, 11 July 2009
‘ताज की वास्तविकता’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Thursday, 9 July 2009
‘‘बनबसा बैराज भगवान भरोसे’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Tuesday, 7 July 2009
‘‘ एक लाश को गोलियों से भूनने वाली पुलिस! शाबाश....!!’’ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मैं भारत में रहता हूँ। इस देश में एक राज्य है ‘‘उत्तराखण्ड’’। उत्तराखण्ड की छवि देश में एक सीधे-सहज और ईमानदार प्रदेश के रूप में सुविख्यात है। जहाँ इस प्रदेश ने लाखों रण-बाँकुरे सैनिक राष्ट्र को दिये हैं, वहीं इस प्रदेश की पुलिस भी बहादुरी में अपने कीर्तिमान स्थापित करने में पीछे नही रही है। चार दिन पूर्व यहाँ की पुलिस ने अपना रुतबा कायम करने के लिए एक पढ़े-लिखे निर्दोष नौजवान को थाने में मे ले जाकर इतना मारा कि उसने अपने प्राण त्याग दिये। फिर उसकी लाश को जंगल में ले जाकर गोलियों से छलनी कर दिया। इस दुर्दान्त कार्य कर को नाम दिया गया एनकाउण्टर। यह कारनामा तो सिर्फ और सिर्फ उत्तराखण्ड पुलिस ही कर सकती है। मेरे मन से अनायास ही निकल पड़ता है कि वाह री बहादुर पुलिस! शाबाश..! शाबाश..! शाबाश....!!! |
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Monday, 6 July 2009
‘‘हरिभूमि’’ हिन्दी दैनिक समाचारपत्र में ब्लॉग-चर्चा
Sunday, 5 July 2009
‘‘एक एनकाउण्टर होने से बच गया’’(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लगभग 13-14 वर्ष पुरानी बात है। उन दिनों मैं पत्रकार परिषद का अध्यक्ष था। पास के गाँव चकरपुर में रात को 8 बजे के लगभग किसी तस्कर को कस्टम के लोगों ने पकड़ रखा था। लेन-देन की बात हो रही थी। तभी अमर उजाला का तत्कालीन पत्रकार अनीस अहमद वहाँ पहुँच गया। वह इस घटना की कवरेज कर रहा था कि एक कस्टम इंस्पेक्टर की नजर उस पर पड़ गयी। अनीस अहमद ने इस कस्टम अधिकारी को बताया कि मैं अमर-उजाला का स्थानीय पत्रकार हूँ। बस इतना सुनना था कि कस्टम अधिकारी ने अपने सिपाहियों की सहायता से जीप में डाल लिया और जंगल की ओर जीप मोड़ दी। रात का अंधेरा था। अनीस अहमद बिल्कुल युवा था वह मौका मिलते ही जीप से कूद गया और जंगल में छिपते-छिपाते नेपाल के रास्ते होते हुए सुबह 4 बजे मेरे निवास पर पहुँचा। उसकी पूरी कहानी सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये। मैंने अनीस को अपने घर में पनाह दी या यूँ कहे कि छिपा लिया। प्रातःकाल होते ही खटीमा थाने में अनीस को कस्टम अधिकारियों द्वारा अगवा करने की रपट लिखा दी गयी। अब छान-बीन शुरू हुई। कस्टम अधिकारियों को थाने में तलब कर लिया बीच सायंकाल मैंने अन्य पत्रकारों के सहयोग से अनीस का मेडिकल कराया। उस के शरीर पर 15 चोटों के निशान थे। फिर अनीस को थाने में पेश कर दिया गया। पुलिस अनीस की निशानदेही पर उस स्थान पर भी गई, जहाँ अनीस जीप से कूद कर भागा था। अन्ततः 2 कस्टम अधिकारियों को जेल भेज दिया गया। इस तरह से एक एनकाउण्टर होने से बच गया। |
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Friday, 3 July 2009
‘‘ समलैंगिक सम्बन्ध : मेरी दृष्टि में ’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
समलैंगिक सम्बन्धों को मान्यता देने का समाचार पढ़ा तो मन को एक धक्का जैसा लगा और एक आह सी निकल पड़ी। मन के कोने से आवाज आयी- ‘‘हे भगवान! यह देश कहाँ जा रहा है?’’ जगद्गुरू कहलाने वाला भारत आज किस संस्कृति की ओर अग्रसर हो रहा है। हमारे नेतागण तो इसे न्यायालय का बहाना बना कर इस पर कभी कुछ बोलने वाले नही हैं। परन्तु तरस तो उन मा0 न्यायाधीश की बुद्धि पर आता है। जिन्होंने कि बिना कुछ सोचे विचारे विदेशी संस्कृति का सहारा लेकर समलैंगिक सम्बन्धों को बैध ठहरा दिया है। यदि वह प्रकृति का ही सहारा ले लेते तो अच्छा था। कुदरत ने भी विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण का सिद्धान्त अपनाया हुआ है। यदि पशु और पक्षियों की बात करें तो वह भी विपरीत लिंग के प्रति ही आकृष्ट होते हुए पाये जाते हैं। अतः मेरी दृष्टि में समलैंगिक सम्बन्ध- एक दुराचार, अनाचार और भ्रष्टाचार ही है। |
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Wednesday, 1 July 2009
‘‘तीन प्रकार की बुद्धि’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आज विद्यालय का पहला दिन था। प्रार्थना के समय अपने विद्यालय के बच्चों को कुछ कहने जा रहा था कि मन में आया कि आज बुद्धि के बारे में कुछ बताया जाये। संसार में बहुधा तीन प्रकार की बुद्धियाँ मानी जाती हैं। इनको मैंने कुछ इस प्रकार से बताया- प्यारे बच्चों! बुद्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं - 1- रबड़ बुद्धि 2- चमड़ा बुद्धि और 3- तेलिया बुद्धि। रबड़ बुद्धि का नाम सुनते बहुत से बालकों ने अपने हाथ खड़े किये और कहा- ‘‘सर जी! हमारी बुद्धि रबड़ है।’’ जब चमड़ा बुद्धि का नाम सुना तो इक्का दुक्का बालकों ने ही हाथ खड़े किये और तेलिया बुद्धि का नाम सुन कर तो किसी ने अपना हाथ नही खड़ा किया। अब मैंने व्याख्या करनी शुरू की। रबड़ बुद्धि रबड़ की भाँति होती है। कितना भी समझाओ खीचो-तानो मगर वह फिर अपनी जगह पर आ जाती है। रबड़ में सूई से कितने ही सुराख कर दो है मगर वो बन्द हो जाते हैं। अर्थात जिस बुद्धि में कुछ भी न समाये वो रबड़ बुद्धि कहलाती है। अब विद्यार्थियों ने कहना शुरू किया- ‘‘सर जी! हमारी बुद्धि तो चमड़ा बुद्धि है।’’ मैंने चमड़ा-बुद्धि की व्याख्या करनी शुरू की। चमड़ा बुद्धि वह बुद्धि होती है जो चमड़े के समान होती है । चमड़े में जितना सूराख कर दो वह उतना ही रहता है।गुरू जी ने जितना समझाया बस उतना हल ग्रहण कर लिया। अपना दिमाग बिल्कुल भी नही लगाया। यह औसत दर्जे की बुद्धि कहलाती है। तीसरे प्रकार की बुद्धि तेलिया बुद्धि होती है। इसे कुशाग्र-बुद्धि या उत्तम प्रकार की बुद्धि भी कह सकते हैं। जिस प्रकार कागज पर एक तेल की बून्द गिरने पर वह पूरे कागज में फैल जाती है। इसी प्रकार तेलिया बुद्धि वाले को इशारा ही काफी होता है। गुरू ती ने पाठ याद करने को दिया तो तेलिया बुद्धि वाले बच्चे अगले दिन पढ़ाये जाने वाले पाठ की भी तैयारी करके आते हैं। |
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