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Saturday, 28 November 2009

"बाबा नागार्जुन का स्नेह उन्हें भी मिला था" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

बात 1989 की है।
उन दिनों बाबा नागार्जुन खटीमा प्रवास पर थे। उस समय खटीमा में डिग्री कॉलेज में श्री वाचस्पति जी हिन्दी के विभागाध्यक्ष थे। बाबा उन्हीं के यहाँ ठहरे हुए थे। 
वाचस्पति जी से मेरी मित्रता होने के कारण बाबा का भरपूर सानिध्य मुझे मिला था। अपने एक महीने के खटीमा प्रवास में बाबा प्रति सप्ताह 3 दिन मेरे घर में रहते थे। वो इतने जिन्दा दिल थे कि उनसे हर विषय पर मेरी बातें हुआ करतीं थी।

मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से हूँ जिसे बाबा नागार्जुन ने अपनी कई कविताएँ स्वयं अपने मुखारविन्द से सुनाईं हैं। "अमल-धवल गिरि के शिखरों पर बादल को घिरते देखा है" नामक अपनी सुप्रसिद्ध कविता सुनाते हुए बाबा कहते थे- "बड़े-बड़े हिन्दी के प्राध्यापक मेरी इस कविता का अर्थ नही निकाल पाते हैं। मैंने इस कविता को कैलाश-मानसरोवर में लिखा था। झील मेरी आँखों के सामने थी। और वहाँ जो दृश्य मैंने देखा उसका आँखों देखा चित्रण इस कविता में किया है।"
जब बाबा की धुमक्कड़ी की बात चलती थी तो बाबा जयहरिखाल (लैंसडाउन-दुगड्डा का नाम लेना कभी नही भूलते थे। उन्होंने वहाँ 1984 में जहरीखाल को इंगित करके अपनी यह कविता लिखी थी-
"मानसून उतरा है
जहरीखाल की पहाड़ियों पर


बादल भिगो गये रातों-रात
सलेटी छतों के 
कच्चे-पक्के घरों को
प्रमुदित हैं गिरिजन


सोंधी भाप छोड़ रहे हैं
सीढ़ियों की
ज्यामितिक आकृतियों में 
फैले हुए खेत
दूर-दूर
दूर-दूर
दीख रहे इधर-उधर
डाँड़े की दोनों ओर
दावानल दग्ध वनांचल
कहीं-कहीं डाल रही व्यवधान
चीड़ों की झुलसी पत्तियाँ
मौसम का पहला वरदान
इन तक भी पहुँचा है


जहरीखाल पर 
उतरा है मानसून
भिगो गया है 
रातों-रात
इनको
उनको
हमको
आपको
मौसम का पहला वरदान
पहुँचा है सभी तक"


जब भी जहरीखाल का जिक्र चलता तो बाबा एक नाम बार-बार लेते थे। वो कहते थे-"शास्त्री जी! जहरी खाल में एक लड़का मुझसे मिलने अक्सर आता था। उसका नाम कुछ रमेश निशंक करके था वगैरा-वगैरा....। वो मुझे अपनी कविताएं सुनाने आया करता था।"
उस समय तो बाबा ने जो कुछ कहा मैंने सुन लिया। मन मे विचार किया कि होगा कोई नवोदित! 
मगर आज जब बाबा के संस्मरण को याद करता हूँ तो बात खूब समझ में आती है।
जी हाँ!
यह और कोई नही था जनाब! 



यह तो रमेश पोथरियाल "निशंक" थे।
कौन जानता था कि बाबा को जहरीखाल में अपनी कविता सुनाने वाला व्यक्ति एक दिन उत्तराखण्ड का माननीय मुख्यमऩ्त्री डॉ.रमेश पोखरियाल "निशंक" के नाम से जाना जायेगा।

18 comments:

  1. यह संस्मरण पढ़ बहुत ही आनन्द आया ।

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  3. अच्छा लगा संस्मरण. आप वाकई भाग्यशाली हैं जो बाबा का सानिध्य मिला

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  4. बहुत रोचक जानकारी दी है, शाष्त्री जी, आभार।
    पर्वतों में तो माहौल ही ऐसा होता है की ख़ुद ही कविता फूटने लगती है, मन में।

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  5. अच्छा लगा संस्मरण पढ़ कर.

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  6. संस्मरण पढ़कर बहुत आनंद मिला! अच्छी और रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद!

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  7. तो मतलब निशंक जी जयहरीखाल के हैं. मैंने लैंसडाउन से जयहरीखाल को देखा है. किसी दिन समय निकालकर वहां घूमना भी पड़ेगा.

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  8. बहुत अच्छा संस्मरण है आपको बहुत बहुत बधाई

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  9. आदरणीय शास्त्री जी,
    बहुत ही रोचक संस्मरण लिखा है आपने बाबा नागार्जुन जी का्। और यह भी हम लिगों का सौभाग्य है कि हमें आपका आशीर्वाद मिलता है जिन्हें नगार्जुन जी का सन्निध्य प्राप्त था।शुभकामनायें।
    पूनम

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  10. बहुत ही रोचक संस्मरण। आप सौभाग्यशाली हैं जो आपको इतने महान व्यक्तित्व का सान्निध्य मिला।
    शुभकामनायें।
    हेमन्त कुमार

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  11. बहुत सुन्दर संस्मरण है. बाबा नागार्जुन की कवितायें बचपन में स्कूल में जब पढ़ा था तब मुझे समझ नहीं आती थी.


    -Sulabh

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  12. बढ़िया संस्मरण......... बाबा सन १९८०-८१ में पानीपत में आये और प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े निर्मोही जी के घर ठहरे. तीन-चार दिन हम कईं जने उनसे कविता सुनने जाया करते थे..

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  13. मयंक जी रचना तो पहले पढ चुकी थी मगर आज शादी की वर्षगाँठ पर मिठाई खाने आयी थी। आपको आज शादी की सालगिरह पर बहुत बहुत बधाई। भाभी जी को भी हमारी मुबारक्वाद दीजियेगा। आपका जीवन मंगलमय हो ।

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  14. जहरीखाल पर
    उतरा है मानसून
    भिगो गया है
    रातों-रात
    इनको
    उनको
    हमको
    आपको

    बाबा की पंक्तियाँ पढ़कर बहुत अच्छा लगा. आप सचमुच बहुत भाग्यशाली हैं की आपको एक तरफ बाबा का सान्निद्ध्य मिला और दूसरी ओर एक कवि मुख्यमंत्री.

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