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श्री वाचस्पति जी के सम्मान में
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" के खटीमा स्थित निवास पर
एक ब्लॉगर-मीट का आयोजन किया गया।
जिसमें डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक",श्री रावेंद्रकुमार रवि-सम्पादकःसरस पायस ,
श्री वाचस्पति-सम्पादकः आधारशिला (त्रिलोचन विशेषांक)
एवं डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने भाग लिया।
इस अवसर पर श्री वाचस्पति ने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा- "एक बार कुछ लेखकों ने मुझसे प्रश्न किया कि वाचस्पति जी आप लेखकों की अपेक्षा कवियों को अधिक प्यार करते है। इस पर मैंने उत्तर दिया कि ऐसी बात नही है। मैं तो सभी साहित्यकारों से प्रेम करता हूँ, लेकिन कवियों को कुछ ज्यादा ही करता हूँ क्योंकि वो व्यवसायिक नही होते हैं। उनकी कविताओं पर न तो कोई फिल्म बनती है तथा न ही कोई अन्य आय का साधन होता है।"
इसके वाद डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने ब्लॉगिंग का प्रारम्भ करने की कहानी सुनाते हुए कहा-"सबसे पहले मैंने "कबाड़खाना" में लिखना शुरू किया। एक दिन मेरे किसी मित्र ने पूछा कि सिद्धेश्वर तुम्हारा ब्लॉग कौन सा है? बस इसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैंने "कर्मनाशा" नाम से अपना ब्लॉग बनाया।"
सरस पायस के सम्पादक श्री रावेंद्रकुमार रवि ने अपनी ब्लॉगिंग के बारे में बताते हुए कहा- "मैंने बाल-साहित्य में रुचि रखने के कारण एक स्वप्न संजोया हुआ था कि बाल-साहित्य पर अपनी लेखनी चलाने वाले उदीयमान और स्थापित साहित्यकारों को प्रोत्साहित करूँगा। इसके लिए सबसे सुलभ और सरल माध्यम मुझे ब्लॉगिंग का लगा और मैंने सरस पायस के नाम से एक ब्लॉग बनाया। बाल-दिवस के दिन इसे मैंने बच्चों को पूर्णतः समर्पित कर दिया है।"
"उच्चारण" के नाम से अपना ब्लॉग चला रहे डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" ने इस अवसर पर अपना विचार व्यक्त करते हुए बताया कि ब्लॉगिंग एक यज्ञ है। जिसमें शब्दों के माध्यम से ज्ञान का दान और टिप्पणियों के रूप में प्रतिदान साथ-साथ चलता रहता है। इसमें पुस्तकें छपवाने जैसा कोई मोटा खर्चा नही होता है। लेकिन पहचान की सुरभि देश-विदेशों तक फैलती है।
Padha to laga kaash mai bhi haazir ho saktee..!
ReplyDeleteब्लॉग एक परिवार हो गया है और हम सब उस परिवार के अभिन्न सदस्य बड़ी खुशी मिलती है एक दूसरे से मिलते हुए..
ReplyDeleteहम भी चाह है शास्त्री जी कब वो अवसर मिले जब आप से मुलाकात हो..बहुत बढ़िया लगा ..धन्यवाद
"इसमें पुस्तकें छपवाने जैसा कोई मोटा खर्चा नही होता है। लेकिन पहचान की सुरभि देश-विदेशों तक फैलती है।"
ReplyDeleteब्लागजगत में एक परिवार भी बनता है, भले ही हम एक दूसरे से व्यक्तिगत तौर पर परिचित न हों!
ब्लाग परिवार फ़लता-फ़ुलता रहे,लोग इसी तरह प्रेम से मिलते-मिलाते रहे,बस और चाहिये भी क्या?
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इस आयोजन के बारे में जानकर. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा आयोजन रहा! काश मैं भी शामिल हो पाती! आपसे कभी मिलने का मौका मिल जाए तो बहुत अच्छा लगेगा ! ब्लॉग एक परिवार जैसा ही हैं जहाँ हम रोज़ सबके साथ मिलते हैं और नए नए पोस्ट पढने को मिलता है चाहे हम सभी ब्लॉगर दोस्तों व्यक्तिगत रूप से क्यूँ न मिले!
ReplyDeletesach kaha .........sabhi blogger ab to ek pariwar ki tarah hi ho gaye hain........jab tak ek doosre ke blog par nhi jate din poora hi nhi hota...........bahut badhiya .
ReplyDeleteAchchha laga jaankar. Ab bloggers ke karyakaram jagah jagah ho rahe hai. Isi tarah ka get to gether aayojan gat saptaah hum logon ne Delhi mein bhi rakha tha.Naye mitra roobaroo hon iss sse achchha moqa koi nahin ho sakta.
ReplyDeletebadhhaaee
bब्लाग परिवार यूँ ही मिलता जुलता रहे और भाईचारे का संदेश देता रहे श्री वाचास्पतिजी को सम्मान के लिये बधाई रवुन्दर रवि जी को भी शुभकामनायें धन्यवाद्
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगता है, इस तरह की रिपोर्ट पढ़कर।
ReplyDeleteधन्यवाद, शाश्त्री जी।
आदरणीय डॉ. शास्त्री साह्ब,
ReplyDeleteइस तरह के आयोजन से ही ब्लॉग परिवार फल-फूल रहा है। यह और समृद्ध बने इसी कामना के साथ,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
aap logon ko dekhkar achchha laga...shubhkaamnaen..
ReplyDeleteइस सम्मेलन की रपट और चित्र देख कर अच्छा लगा । सिद्धेश्वर जी तो हम लोगों के साथ भिलाई मे भी ऐसे ही एक लघु सम्मेलन मे शामिल हो चुके हैं । यह मिलना -मिलाना ज़रूरी है ।
ReplyDeleteसुंदर परिचर्चा. हिन्दी ब्लॉग जम रहा है, फिर भी अंग्रेजी ब्लॉग की तुलना में काफी काम बाकी है, जिसमें आप जैसे विद्वान जुटे हैं. आदर.
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