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Saturday 3 October 2009

"पं. लालबहादुर शास्त्री" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)




"पं0 लालबहादुर शास्त्री का संक्षिप्त जीवन वृत्त"

लगभग 100 वर्ष पुरानी बात है। कुछ बालक वाराणसी में गंगा के पार मेला देख कर लौट रहे थे। 
इनमें से एक बालक पीछे रह गया था। ये बालक तो नाव में बैठ कर वाराणसी आ गये किन्तु पीछे रह गया बालक जब गंगा तट पर पहुँचा तो उसके पास नाव में बैठने के लिए पैसे ही नही थे। अतः यह साहस करके गंगा में कूद गया और तैर कर दूसरे किनारे पर आ गया।
आप जानना चाहते हो कि यह बालक कौन था? जी हाँ, यह साहसी बालक था लाल बहादुर। इनकी माता का नाम रामदुलारी और पिता का नाम शारदा प्रसाद था। दो अक्टूबर सन् 1904 को इनका जन्म हुआ था। माता-पिता इन्हें प्यार से नन्हे कह कर पुकारते थे।
जब ये डेढ़ वर्ष के ही थे कि इनके सिर से पिता का साया उठ गया था। इसलिए इनकी प्राथमिक शिक्षा इनके ननिहाल मिर्जापुर में हुई। बढ़े होने पर ये अपनी शिक्षा एक सम्बन्धी के घर रहकर वाराणसी में करने लगे।

महात्मा गांधी की प्रेरणा से लालबहादुर ने अपनी शिक्षा बीच में ही रोक दी और वे आजादी की जंग में सम्मिलित हो गये। बाद में उन्होंने अपनी पढ़ाई फिर शुरू की और काशी विद्यापीठ से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। 
अब ये लालबहादुर शास्त्री बन गये थे और इन्होंने अपना सारा जीवन समाजसेवा और स्वतन्त्रता संग्राम को समर्पित कर दिया था।
आजादी की लड़ाई में ये तीन बार जेल गये और नौ वर्षों तक इन्होंने जेल यातनाएँ सहीं।
चौबीस वर्ष की आयु में इनका विवाह सन् 1928 में ललिता जी के साथ हुआ। 
विवाह में सादगी इतनी थी कि इन्होंने दहेज के नाम पर एक चरखा और खादी का कुछ गज कपड़ा ही स्वीकार किया था। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस में सम्मिलित हो गये और इलाहाबाद को अपनी कर्मस्थली बनाया।
शास्त्री जी ने अपनी योग्यता और सादगी के बल पर कांग्रेस पार्टी के उच्च पदों को सुशोभित किया। सन् 1937 में ये उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गये।
देश के स्वतन्त्र होने के पश्चात इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में मन्त्री बनाया गया।  
देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पं0 जवाहर लाल नेहरू इनकी योग्यता से बहुत प्रभावित थे। अतः केन्द्र सरकार में इन्हें रेल मन्त्री बना दिया गया। रेल मन्त्रालय का कार्यभार सम्भालने के उपरान्त इनहोंने इस विभाग में बहुत सारे सुधार किये। लेकिन इनके कार्यकाल में दक्षिण भारत में एक रेल दुर्घटना में 144 व्यक्ति मारे गये। शास्त्री जी ने रेल मन्त्री होने के नाते इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मन्त्री का पद छोड़ने में पल भर की भी देर नही लगाई। यह उनकी ईमानदारी का उत्कृष्ट उदाहरण था।
देश को इस सच्चे और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की जरूरत थी। अतः उन्होंने केन्द्र सरकार में बारी-बारी से अनेक मन्त्रालयों का दायित्व बड़ी जिम्मेदारी से निभाया। अन्ततः उन्हें देश का गृहमन्त्रालय दिया गया। पं0 जवाहर लाल नेहरू उस समय देश के प्रधानमंत्री थे। जीवन में अन्तिम दिनों में नेहरू जी अस्वस्थ रहने लगे थे। उस समय राज-काज में लाल बहादुर शास्त्री जी की सहायता की उनको जरूरत थी। जिसके लिए उन्हें केन्द्र सरकार में बिना विभाग का मन्त्री बना दिया गया था।
नेहरू जी की मृयु के उपरान्त पं0 लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमन्त्री पद सौंपा गया। शास्त्री जी कुल 18 महीने प्रधानमन्त्री रहे। लेकिन उनके कार्यकाल को लोग आज भी गर्व के साथ स्मरण करते हैं।
जब ये प्रधानमन्त्री बने तो देश में अन्न की कमी थी। दूसरे देश अनाज देने के बदले में हम पर मनमानी शर्तें थोपना चाहते थे। अतः शास्त्री जी इस संकट की घड़ी में भी किसी देश के सामने नही झुके। उन्होंने विदेशी अनाज को ठुकरा दिया और का देश के किसानों और वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक अनाज उपजाने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने सप्ताह में एक दिन सोमवार को एक समय का भोजन करना बन्द कर दिया। देश के करोड़ों लोगों ने भी उनका अनुसरण किया।
साहस, धैर्य और परिश्रम के बल पर देश में अन्न की तंगी तो मिट गई। परन्तु सन् 1965 में पाकिस्तान ने हमारे देश पर यह सोच कर हमला कर दिया कि यह गांधी जी की तरह सीधा-सच्चा और अहिंसा का पुजारी हमें भला क्या जवाब देगा? लेकिन वह यह भूल गया था कि पं0 लाल बहादुर शास्त्री एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी रहा है और उसे अपने देश की स्वतन्त्रता प्राणों से भी प्यारी है।
लाल बहादुर का एक आदेश पाकर भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के इस आक्रमण का मुँहतोड़ जवाब दिया। अब पाकिस्तान यह समझ गया था कि यह विनम्र प्रधानमन्त्री कमजोर नही है।
पं0 लाल बहादुर शास्त्री छोटे कद के होते हुए भी अपनी चारित्रिक विशंषताओं के कारण लम्बे से लम्बे व्यक्ति से भी ऊँचे थे।
शास्त्री जी मानते थे कि पड़ोसी देशों के साथ मिल-जुल कर ही रहना चाहिए। अतः युद्ध जीतने के बावजूद भी उन्होंने रूस की मध्यस्थता में ताशकन्द में जाकर समझौता किया। समझौता होने के बाद रात में ही उनहें दिल का दौरा पड़ गया और वे भारतवासियों को रोता-बिलखता छोड़कर सदा-सदा के लिए संसार से विदा हो गये। शास्त्री जी एक सच्चे देशभक्त थे। इतने ऊँचे पद पर रह कर भी वे अपना निजी घर न बना सके। उनकी ईमानदारी का इससे बड़ा और क्या या सबूत होगा।
भारतमाता के इस सपूत को मैं श्रद्धा से शत्-शत् नमन करता हूँ।

14 comments:

  1. शास्त्री जी, बहुत ही प्रेरक प्रसंग, मैं भी कुछ :स्वर्गीय "लाल" पर लिखना चाह रहा था मगर जब से ब्रेक के बाद आया हूँ नेट ठीक से नहीं चल रहा ! खैर, बहुत बधाई कि आपने वह कमी पूरी कर दी !

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  2. bahut hi prernadayi prasang hai ..........lal bahadur shastri ji ko hamara naman.

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  3. पंडित लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में अच्छी जानकारी के लिए आभार

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  4. bahut hi prerak hai yeh lekh..... naav wali ghatna hum skool mein padh chuke hain.....3sri kaksha mein...... aaj phir yaad aa gayi........achcha laga......... par ab kya karen BAPU ke aage inka janmdiwas gaun ho gaya hai......

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  5. शास्त्री जी की की जीवनी से बहुत प्रेरणा मिलती है बहुत बहुत धन्यवाद उन्को विन्म्र श्रद्धाँजली

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  6. bahut achchi jaankari di aapne.........

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  7. bahut achchi jaankari di aapne.........

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  8. आदरणीय शास्त्री जी,
    बहुत बहुत आभार आपको शास्त्री जी के ऊपर इतना अच्छा सारगर्भित लेख पढ़वाने के लिये।प्रायः लोग दो अक्टूबर को गांधी जी के समक्ष शास्त्री जी को भूल ही जाते हैं।
    हेमन्त कुमार

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  9. शास्त्री जी पर बहुत ही भावपूर्ण और सार्थक लेख. आभार

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  10. जब ये प्रधानमन्त्री बने तो देश में अन्न की कमी थी। दूसरे देश अनाज देने के बदले में हम पर मनमानी शर्तें थोपना चाहते थे। अतः शास्त्री जी इस संकट की घड़ी में भी किसी देश के सामने नही झुके। उन्होंने विदेशी अनाज को ठुकरा दिया और का देश के किसानों और वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक अनाज उपजाने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने सप्ताह में एक दिन सोमवार को एक समय का भोजन करना बन्द कर दिया। देश के करोड़ों लोगों ने भी उनका अनुसरण किया।

    साहस, धैर्य और परिश्रम के बल पर देश में अन्न की तंगी तो मिट गई। परन्तु सन् 1965 में पाकिस्तान ने हमारे देश पर यह सोच कर हमला कर दिया कि यह गांधी जी की तरह सीधा-सच्चा और अहिंसा का पुजारी हमें भला क्या जवाब देगा? लेकिन वह यह भूल गया था कि पं0 लाल बहादुर शास्त्री एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी रहा है और उसे अपने देश की स्वतन्त्रता प्राणों से भी प्यारी है।
    लाल बहादुर का एक आदेश पाकर भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के इस आक्रमण का मुँहतोड़ जवाब दिया। अब पाकिस्तान यह समझ गया था कि यह विनम्र प्रधानमन्त्री कमजोर नही है।

    पं0 लाल बहादुर शास्त्री छोटे कद के होते हुए भी अपनी चारित्रिक विशंषताओं के कारण लम्बे से लम्बे व्यक्ति से भी ऊँचे थे।

    ऐसे सच्चे आदर्शों को मानने वाले इस देश में कितने रह गए. अफ़सोस की ऐसे आदर्श बनाने वालों का तो टोटा ही हो गया है.

    शास्त्री जी को सादर नमन.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  11. शास्त्री जी का समूचा जीवन एक आदर्श की पराकाष्ठा है. उनको नमन करते हुए आज हम देश समाज हित में कुछ अच्छा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
    आलेख के लिए आपका धन्यवाद!

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  12. [पं]लालबहदुर शास्त्री, पहले कभी न पढा न सुना हमेसा श्री लालबह्दुर शस्त्री ही पढा सुनअ कया यह आप्कि खिज है या हमरा अग्यान,क्रिपया समधान करे

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  13. श्री SP Dubey जी!
    श्री लालबहादुर शास्त्री जी के नाम के पहले जो पण्डित
    लगाया गया है। उसका अभिप्राय विद्वान से है, न कि जन्म और जाति से।

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  14. ab istifa kaun dega , virodhi dal dwara shasit rajya me durghatna hone par rajya sarkar ko jimmedar thahra denge

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