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Tuesday, 27 April 2010

“धर्म बदला जा सकता है, जाति नही!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

मित्रों!
आज मैं जातिवादी युग में एक अटपटा सा छोटा सा लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ-
आज जातिवाद की ज्वाला में हमारा देश झुलसा हुआ है! धर्म का मुद्दा तो आज काफी पीछे छूट गया है!
लेकिन इतनी बात तो तय है कि जाति जन्म से होती है!
वैदिक काल में पुरुष जाति और स्त्री जाति दो ही होती थी! यहाँ मैं नपुंसक जाति का जिक्र जानबूझकर नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि उनमें भी महिला और पुरुष का भेद तो स्पष्ट झलकता ही है! यदि पशुओं की बात करें तो खिच्चर और खिच्चरा की संरचना तो आपने देखी ही होगी!
वैदिक काल में वर्ण चार होते थे-
ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र!
लेकिन आज तो जातीयता के जाल में पूरा समाज जकड़ा हुआ है। जिसको प्रचारित और प्रसारित करने का महान कार्य इस आजाद भारत की सरकारों ने किया है! यदि साफ-साफ कहें तो हमारे उस संविधान ने यह जहर फैलाया है, जिसका निर्माण संसद में बैठकर हमारे राजनेताओं द्वारा किया जाता है!
यदि पिछड़ी जाति की बात करें तो इसकी अनुसूची में उत्तराखण्ड में 84 जातियाँ पंजीकृत हैं! इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति और सामान्य वर्ग    में भी अनेक जातियों का उल्लेख है!
आप यदि चाहें तो अपना धर्म परिवर्तन कर सकते हैं। जैसी की खबरें यदा-कदा सुनने को मिल जाती हैं! परन्तु जाति कभी नहीं बदलती।
कारण यह है कि जिस जाति में व्यक्ति ने जन्म ले लिया वह जीवन पर्यन्त उसके साथ जुड़ जाती है और मत्यु तक रहती है! 
लेकिन विडम्बना देखिए-
परिवर्तनशील निवास का प्रमाणपत्र तो जीवनभर के लिए बन जाता है लेकिन पिछड़ी-जाति का प्रमाणपत्र केवल छः माह के लिए ही वैध कहलाता है!
बेकारी के इस युग में बेरोजगारों के लिए यह एक परेशानी भरा कार्य है! एक बार के प्रमाणपत्र बनवाने में 300 से 500 रुपये की भेंट तहसील में चढ़ानी ही पड़ती है! यानि बेरोजगारों पर दोहरी आर्थिक मार!
मैं 2005 से 2008 तक उत्तराखण्ड-सरकार में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य रहा! मैंने कितनी ही बार आयोग में यह प्रस्ताव पारित करवाकर सरकार को भिजवाया कि जाति प्रमाणपत्र के लिए कम से कम 3 से 5 वर्ष की वैधता होनी चाहिए। लेकिन सरकार की ओर से कोई उत्तर नही आया। थक-हार कर एक बार तो सचिव समाज कल्याण की पेशी ही लगा दी कि वो आयोग के सामने आकर स्थिति स्पष्ट करें!
समाज कल्याण मन्त्रालय का अपर सचिव आयोग के समक्ष पेशी पर आया तो उसने लिखित रूप में बताया कि- क्रीमीलेयर के कारण इसकी वैधता सिर्फ 6 महीने की रखी गई है!
जब उससे प्रश्न किये गये कि मात्र 6 महीने में किसी की क्रीमीलेयर कैसे बदल सकती है तो उससे जवाब देते हुए नहीं बना!
अन्त में उसने यह कहकर अपना पीछा छुड़ा लिया कि उत्तर-प्रदेश से यह नियमावली हमें विरासत में मिली है! किन्तु दुर्भाग्य यह है कि-आज तक इस अधिनियम में संशोधन नही हो सका है!
गरीबों और बेरोजगारों की मसीहा कहलाने का दावा करने वाली चाहे कोई भी सरकार आये उसकी कार्यशैली वही ढाक के तीन पात जैसी ही है!
यदि यह लिख दूँ कि मन्त्रियों के पास सरकार चलाने की कोई योग्यता नहीं है तो इसमें कोई सन्देह की गुंजाइश नही होनी चाहिए!
आज भी सरकार तो सचिव ही चलाते हैं और वे यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके विभाग के कर्मचारी/अधिकारी रिश्वत के लिए तरसते रहें!   

9 comments:

  1. रिश्वत का भी तो अपना एक धर्म होता है जो सब धर्मों पर कमोबेश हाबी है.
    सादर

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  2. Mere vicharse jaat,paat badali ja sakti hhhhai 'dharayate iti dhamm'..
    Pracheen bharteey bhashame dharm shabd ka prayog 'nisarh niyamon'ko leke hota tha.
    'Swabhav dharm:...jalna aur agnee ka sthayi bhaav hai..aap cchhahe maharaj hon ya bhikshuk..nisarg ke niyam sabke liye ek jaise hain...
    Isliye maine kaha, dharm nahi jati badli ja sakti hai....qudratke qanoon ham nahi badal sakte..

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  3. baat to aapn ebilkul sahi kahi hai.......kaun apn ekatore ki malayi kisi aur ko khane dega.

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  4. अजीब गोरखधंधा है जी , इस विरासत में ।

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  5. पिछड़ी जाति के प्रमाण-पत्र की
    वैधता की न्यूनतम अवधि
    3 वर्ष तो होनी ही चाहिए!
    --
    डॉ. मयंक जी के
    इस महत्त्वपूर्ण आलेख से उत्तराखंड सरकार को
    सीख लेनी चाहिए!

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  6. katu such ko aapne samne rakha hai .
    aarakshan kee rajneeti ne nak me dum kar rakha hai aam aadmee ke jeevan me .

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  7. जात पात इसे खत्म ही क्यो नही कर देते, सभी इंसान एक बराबर है, ओर झगडा ही खत्म कॊई बडा नही कोई छोटा नही, सब को समान आधिकार

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