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Friday, 23 April 2010

“लोग क्यों?:डॉ.राजकिशोर सक्सेना राज”

लोग क्यों?
बिन कोई ठोकर लगे ही,
लड़खड़ाते लोग क्यों?
परकटी चिड़िया से खुद ही,
फड़फड़ाते लोग क्यों?

जानकर लेते मुसीबत,
खेलते फिर शौक से,
जब लिपट जाती गले से,
चिड़चिड़ाते लोग क्यों?

असलियत सबको पता है,
जानते हैं लोग सब,
बेवजह महफिल में बेपर की,
उड़ाते लोग क्यों?

हर कदम पर है मुसीबत,
हर शहर में हर जगह,
घुस चले फिर क्यों शहर में,
धड़धड़ाते लोग क्यों?

हर कदम रक्खे संभलकर,
जानिबे मंजिल मगर,
पास मंजिल के पहुँचकर,
लड़खड़ाते लोग क्यों?

जानते हैं कुछ असर,
पत्थर पे हो सकता नही,
”राज” सबकुछ जानकर भी, 

गिड़गिड़ाते लोग क्यों?

 
31072009407
डॉ.राजकिशोर सक्सेना "राज”

7 comments:

  1. बहुत खूब्…………………कुछ तो लोग कहेंगे , लोगों का काम है कहना…………………यही कह सकती हूँ।

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  2. बहुत सुंदर कविता... लोगो का क्या.
    धन्यवाद

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  3. सच कहती खूबसूरत रचना .

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  4. aakhiri khand bahut achchha laga . Badhai!!

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  5. शानदार रचना! बहुत अच्छा लगा!

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  6. हर कदम रक्खे संभलकर,
    जानिबे मंजिल मगर,
    पास मंजिल के पहुँचकर,
    लड़खड़ाते लोग क्यों?
    बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया..खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...बेहतरीन प्रस्तुति !

    _________________
    "शब्द-शिखर" पर इस बार गुड़िया (doll) की दुनिया !

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  7. जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर....बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..

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