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Friday 25 March 2011

"सजने लगा है माँ पूर्णागिरि का दरबार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

होली के समाप्त होते ही माँ पूर्णागिरि का मेला प्रारम्भ हो जाता है और भक्तों की जय-जयकार सुनाई देने लगती है! 
मेरा घर हाई-वे के किनारे ही है। अतः साईकिलों पर सवार दर्शनार्थी और बसों से आने वाले श्रद्धालू अक्सर यहीं पर विश्राम कर लेते हैं।
यदि आपका कभी माँ पूर्णागिरि के दर्शन करने का मन हो तो सबसे पहले आप खटीमा से 7 किमी दूर पूर्णागिरि मार्ग पर चकरपुर में बनखण्डी महादेव के प्राचीन मन्दिर भोलेबाबा के दर्शन अवश्य करें।
मान्यता है कि शिवरात्रि पर रात में भोले बाबा के साधारण से दिखने वाले पत्थर का रंग सात बार बदलता है।
इसके बाद आप रास्ते में पढ़ने वाले बनबसा कस्बे में पहुँचें तो भारत-नेपाल की सीमा भी देख लें। 
यहाँ शारदा न नदी पर बना एक विशाल बैराज है। जिसके पार करने पर आप नेपाल की सीमा में प्रविष्ट हो जाएँगे।
पुल के चौंतीस पिलर्स (गेट) हैं उनको पार करने के उपरान्त आपको भारत की आब्रजन और सीमा चौकी पर भी बताना होगा कि हम नेपाल घूमने के लिए जा रहे हैं।
और अगर समय हो तो नेपाल के शहर महेन्द्रनगर की विदेश यात्रा भी कर लें।
बनबसा के आगे पूर्णागिरि जाने के लिए आपको अन्तिम मैदानी शहर टनकपुर आना होगा। 
रास्ते में आपको दिव्य आद्या शक्तिपीठ का भव्य मन्दिर भी दिखाई देगा। आप यहाँ पर भी अपनी वन्दना प्रार्थना करना न भूलें।
यहाँ से 4 किमी दूर जाकर पहाड़ी रास्ते की यात्रा आपको पैदल ही करनी होगी मगर आजकल जीप भी चलने लगीं है इस मार्ग पर। जो आपको भैरव मन्दिर पर छेड़ देंगी। भैरव मन्दिर के बाद तो  कोई सवारी मिलने का सवाल ही नहीं उठता हैा। अपना भार स्वयं उठाते हुए यहाँ से आप माता के दरबार तक 3 किमी तक पैदल चलेंगे।
1500 मीटर चलने के बाद आपको टुन्यास नामक आखरी पड़ाव मिलेगा।
 यहाँ पर आप अपने बाल-गोपाल का मुण्डन संस्कार भी करा सकते हैं।
उसके बाद आपको नागाबाड़ी में पहाड़ी रास्ते के दोनों ओर बहुत से नागा साधुओं के दर्शन होंगे।
    थोडी दूर और चलने के बाद माता का पक्का पहाड़ आ जाएगा और सीढ़ियों से चलकर आपको दरबार तक जाना पड़ेगा।
    और यह है माता के मन्दिर का पिछला भाग। 
इसके साथ ही सीढ़ियाँ माता के मन्दिर की ओर मुड़ती हैं और माता का दरबार आपको दिखाई दे जाएगा।
    यदि भीड़ कम हुई तो शीघ्र ही माता के दर्शनों का लाभ भी मिल जाएगा।
यही वो छोटा सा मन्दिर है जिसके दर्शनों के लिए आप इतना कष्ट उठा कर यहाँ तक आयेंगे। मगर इसकी मान्यताएँ बहुत बड़ी हैं।
नीचे है माता के दरबार से लिया गया पर्वतों का मनोहारी चित्र। 
जिसमें नीचे शारदा नदी दिखाई दे रही है।
आप जिस रास्ते से माता के दर्शन करने के लिए आये थे अब उस रास्ते से वापिस नहीं जा पाएँगे क्योंकि मन्दिर से नीचे उतरने के लिए अलग से सीढ़िया बनाई गईं हैं।
वापस लौटते हुए आप झूठे के चढ़ाए हुए मन्दिर के भी दर्शन कर लें। 
यहाँ आपको यह भोला-भाला नन्दी और कुष्ट रोगियों के परिवार खाना पकाते खाते हुए भी नजर आयेंगे।
आपकी श्रद्धा हो तो आप दान-पुण्य भी कर सकते हैं।
माता पूर्णागिरि आपकी मनोकामनाएँ पूर्ण करें।

18 comments:

  1. holi ka maja aap k juban m vah maja aa gaya

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  2. पिथोरागढ़ ४ साल रहे फिर भी माँ पूर्णागिरी के दर्शन नहीं कर पाए कभी.
    आपने दर्शन करा दिए बहुत बहुत आभार.

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  3. मयंक जी एक बार तो मै भी गया था लगभग ३२ साल पहले बड़ा ही सुन्दर स्थान है

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  4. चलिए, इस बहाने दर्शन हुए..बहुत सुन्दर..आभार.

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  5. सुंदर चित्रमयी प्रस्तुति

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  6. पिछले वर्ष टनकपुर से श्यामलाताल और मायावती जाना हुआ था तब वहां के स्थानीय लोगो ने हमसे कहा था इतनी दूर आये है और माँ के दर्शन नही किये किन्तु समयाभाव के कारण जाना नहीं हुआ |
    आपके द्वारा विस्तृत वर्णन से माँ के दर्शन हो गये |
    आभार

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  7. शास्त्री जी,
    इस सचित्र पोस्ट के लिये आपका आभार। बरेली छूटने के बाद पूर्णागिरि माँ के दर्शन फिर से करने की तमन्ना मन में ही रह गयी।

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  8. माँ पूर्णागिरी के दर्शन करवाने के लिए बहुत बहुत आभार।

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  9. माँ पूर्णागिरी के दर्शन करा दिए बहुत बहुत आभार|

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  10. bahut sundar chitr aur jankari di aapne....ati sundar

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  11. तस्वीरों के माध्यम से हमारी भी माँ पूर्णागिरी की परिक्रमा पूर्ण हुई ...
    आभार !

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  12. जय माँ पूर्णागिरी . दर्शन करवाने के लिए आभार.

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  13. बढ़िया और वृतांत वर्णन...कभी संभव हुआ तो ज़रूर घूमेंगे....धन्यवाद शास्त्री जी

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  14. हिन्दू नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ

    http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/04/hindi-twitter.html

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  15. माँ पूर्णागिरी के दर्शन करा दिए बहुत बहुत आभार|
    विवेक जैन
    vivj2000.blogspot.com

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