समर्थक

Wednesday 14 April 2010

“चमचों की तो यहाँ भी भरमार है”

"ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।
जरा-जरा सी बात पर, अपने बनते गैर।।"

32 वर्ष पहले की बात है। हमारे पड़ोस में उन दिनों अपने एक स्वजातीय की किराने की दूकान थी। उस समय उनकी दूकान में प्रतिदिन 15 से 20 हजार रुपये तक की बिक्री होती थी।
समय बदला और धीरे-धीरे उनकी दुकानदारी कम होती गई। अब हालात यह थे कि लेनदारों के साथ उनकी तू-तू, मैं-मैं भी होने लगी थी।
हमने उनकी बैंक लीमिट में गारण्टर के रूप में हस्ताक्षर किये हुए थे।
यह देखकर हमारे कान खड़े होने लगे थे। एक दिन हमने उनसे पूछा- "भाई साहब क्या बात है? लोग आजकल आपसे अक्सर तू-तू, मैं-मैं क्यों करने लगे हैं?"
बस इसी बात पर वो हमसे नाराज हो गये। हमने बैंक से उनकी गारण्टी वापिस ले ली।
इसका असर यह हुआ कि उनसे बोल-चाल भी बन्द हो गई।
एक दिन किसी मीटिंग में उनके पास ही बैठना पड़ा। सिर्फ हाँ-हूँ में बातें होने लगी। 
आखिर हमने कह ही दिया कि जितने दिन हमने आपकी गारण्टी रखी उतने दिन का तो उपकार मानिए।
लकिन उपकार और इस युग में!
यह तो ऐसा था जैसे कि सरदारों के मुहल्लों में नाई की दूकान!
अब तो गुटबन्दी शुरू हो गई। उनका एक-आध चमचा देख लेने की धमकी भी दे गया।
हमें तो कोई अन्तर नही पड़ा लेकिन कालान्तर में उनकी दुकानदारी चौपट हो गई!
अगर आप भी इस चमचागिरि से ग्रस्त हैं तो समय की नजाकत को पहचानते हुए चमचों से दूर रहने की कोशिश कीजिए!
यही सुखी रहने का रहस्य है!

"कबिरा इस संसार में, चमचों की भरमार।
चमचे ही मझधार में, गुम करते पतवार।।"

19 comments:

  1. शास्त्री जी, सत्य वचन! यहाँ भी आधे से अधिक लोगो की दुकानदारी सिर्फ चमचागिरी के बूते पे चल रही है.....

    ReplyDelete
  2. शास्त्री जी...बिलकुल सही कहा आपने...
    बढ़िया...सीख देता संस्मरण

    ReplyDelete
  3. blogjagat ke liye bhi ek katu satya hai....

    ;)

    ReplyDelete
  4. सीख तो अच्छी है..संदर्भ ज्ञात न हो पाया.

    ReplyDelete
  5. satya vachan...

    rgds,
    surender
    http://shayarichawla.blogspot.com/

    ReplyDelete
  6. सुन्दर प्रसंग लेकिन चमचों वाली बात जबरदस्ती घुसाई गई सी लगती है. घटिया लेखन. (देखिये मैं बढ़िया कहता तो आपका चमचा कहलाता.)

    ReplyDelete
  7. यह तो नेकी करके कुएं में डालने वाली बात है जी बेचारे चमचा को जबरन परेशान कर रहे हैं आप । तभी तो चमचा आपको देख लेने की धमकी दे गया है ।

    ReplyDelete
  8. बिलकुल सही कहा आपने..............अच्छी सीख देता संस्मरण

    ReplyDelete
  9. बढ़िया संस्मरण....बिना चमचागिरी के आज कल कहीं दाल गलती है???????????

    संदेशात्मक पोस्ट

    ReplyDelete
  10. बढ़िया ! बिलकुल सही कहा आपने !

    ReplyDelete
  11. सत्यवचन शास्त्री जी , इसी लिए मैं तो सीधे ही करछा बनता हूँ, चमचा बिलकुल नहीं बनता

    ReplyDelete
  12. दुकानदारी कम क्यों हुई , ये नहीं बताया आपने ।
    वैसे बुरा वक्त पड़ने पर साथ कौन रहता है ।

    ReplyDelete
  13. दोहे से शुरुआत है, दोहे से ही अंत!
    छुपी हुई इस पोस्ट में, महिमा बहुत अनंत!

    ReplyDelete
  14. बिलकुल सही कहा है.... आपने ......

    ReplyDelete
  15. यथार्थ लेखन . सीख देता संस्मरण.

    ReplyDelete
  16. aajkal chamche dhundhe nahi milte ,aap keh rahe hain ki bharmaar hai?

    aajkal 'nindak' milte hain nindak..

    ReplyDelete
  17. Read your blog and it forced me to accept that yes this world is full of "Chamchas" specially indian politics and government offices. We cannot deny for private organisations also.

    ReplyDelete
  18. Seedhi saral bhasha aur andaaz me pateki baat bata gaye aap!

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।