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Saturday, 15 February 2014

"बाबा नागार्जुन और डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक'..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

      बात 1989 की है। उन दिनों बाबा नागार्जुन खटीमा प्रवास पर थे। उस समय खटीमा में डिग्री कॉलेज में श्री वाचस्पति जी हिन्दी के विभागाध्यक्ष थे। बाबा उन्हीं के यहाँ ठहरे हुए थे। 
वाचस्पति जी से मेरी मित्रता होने के कारण बाबा का भरपूर सानिध्य मुझे मिला था। अपने एक महीने के खटीमा प्रवास में बाबा प्रति सप्ताह 3 दिन मेरे घर में रहते थे। वो इतने जिन्दा दिल थे कि उनसे हर विषय पर मेरी बातें हुआ करतीं थी।

       मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से हूँ जिसे बाबा नागार्जुन ने अपनी कई कविताएँ स्वयं अपने मुखारविन्द से सुनाईं हैं। "अमल-धवल गिरि के शिखरों पर बादल को घिरते देखा है" नामक अपनी सुप्रसिद्ध कविता सुनाते हुए बाबा कहते थे- "बड़े-बड़े हिन्दी के प्राध्यापक मेरी इस कविता का अर्थ नही निकाल पाते हैं। मैंने इस कविता को कैलाश-मानसरोवर में लिखा था। झील मेरी आँखों के सामने थी। और वहाँ जो दृश्य मैंने देखा उसका आँखों देखा चित्रण इस कविता में किया है।"
जब बाबा की धुमक्कड़ी की बात चलती थी तो बाबा जयहरिखाल (लैंसडाउन-दुगड्डा का नाम लेना कभी नही भूलते थे। उन्होंने वहाँ 1984 में जहरीखाल को इंगित करके अपनी यह कविता लिखी थी-
"मानसून उतरा है
जहरीखाल की पहाड़ियों पर"

बादल भिगो गये रातों-रात
सलेटी छतों के 
कच्चे-पक्के घरों को
प्रमुदित हैं गिरिजन

सोंधी भाप छोड़ रहे हैं
सीढ़ियों की
ज्यामितिक आकृतियों में 
फैले हुए खेत
दूर-दूर
दूर-दूर
दीख रहे इधर-उधर
डाँड़े की दोनों ओर
दावानल दग्ध वनांचल
कहीं-कहीं डाल रही व्यवधान
चीड़ों की झुलसी पत्तियाँ
मौसम का पहला वरदान
इन तक भी पहुँचा है

जहरीखाल पर 
उतरा है मानसून
भिगो गया है 
रातों-रात
इनको
उनको
हमको
आपको
मौसम का पहला वरदान
पहुँचा है सभी तक"
        जब भी जहरीखाल का जिक्र चलता तो बाबा एक नाम बार-बार लेते थे। वो कहते थे-"शास्त्री जी! जहरी खाल में एक लड़का मुझसे मिलने अक्सर आता था। उसका नाम कुछ रमेश निशंक करके था वगैरा-वगैरा....। वो मुझे अपनी कविताएं सुनाने आया करता था।"
उस समय तो बाबा ने जो कुछ कहा मैंने सुन लिया। मगर मन में विचार किया कि होगा कोई नवोदित! 
       आज जब बाबा के संस्मरण को याद करता हूँ तो बात खूब समझ में आती है।
      जी हाँ! यह और कोई नही था जनाब! यह तो रमेश पोखरियाल "निशंक" थे।
       कौन जानता था कि बाबा को जहरीखाल में अपनी कविता सुनाने वाला व्यक्ति एक दिन उत्तराखण्ड का माननीय मुख्यमऩ्त्री डॉ.रमेश पोखरियाल "निशंक" के नाम से जाना जायेगा।

2 comments:

  1. बहुत अच्छा संस्मरण लिखा सच में आप भाग्य शाली थे जो बाबा नागार्जुन को साक्षात सुना ,हमे तो पढ़कर ही इतना अच्छा लग रहा है ,साझा करने के लिए आभार

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  2. आप ने भी तो बाबा नागार्जुन की कविताऐं सुनी और अपनी सुनाई भी होंगी । अच्छा हुआ आप कवि बने रहे और अभी भी हैं ,मंत्री नहीं बने , नेता बनने के बाद कविता बहुत कम जिंदा रह पाती है है ना मेरा सोचना है गलत भी हो सकता है :)

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