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Saturday 8 May 2010

“साहित्य और सम्वेदना” (मयंक)

“कौन धनी और कौन निर्धन?”

आज दो संस्मरणों को प्रस्तुत कर रहा हूँ ! जो शीर्षक की पुष्टि स्वयं ही करेंगे!

सन् 2007 की बात है! मेरे नगर में धनाढ्य वृद्धों ने एक संस्था का गठन किया! एक व्यक्ति ने धनाढ्य अध्यक्ष को अपने पक्ष में लेकर बाल साहित्य का कार्यक्रम करने के लिए 60-70 हजार का चन्दा संग्रह कर लिया!
50 हजार से अधिक की धनराशि का व्यय हुआ!
कार्यक्रम में नगर के नागरिक 5 और बाहर के बाल-साहित्यकार 50 इकट्ठे हुए!

इस संस्था के एक निर्धन सदस्य के पुत्र का एक्सीडेण्ट हुआ!
डॉक्टरों ने इलाज का खर्च 1 लाख से अधिक बताया! इस
सदस्य ने संस्था में गुहार की तो कंजूस अध्यक्ष ने पहले तो कहा कि सब लोग व्यक्तिगत रूप से इनकी मदद करें!
मगर सदन ने जब कहा कि संस्था की ओर से भी तो सहायता होनी चाहिए!
अध्यक्ष का दिल पसीजा और एक हजार रुपये संस्था की ओर से देने की घोषणा की गई! 
अब तो मैंने अध्यक्ष जी को सुनाना शुरू कर ही दिया- साहित्य और सम्वेदना के झूठे गाल बजाने से कुछ नही होता है!
मेरी मुहिम रंग लाई और संस्था की ओर से इस निर्धन को 10 हजार की सहायता दिलवाकर ही मैंने दम लिया!

9 comments:

  1. Bahut achha laga padhke..aapko sachhe dilse dua zaroor mili hogi..
    Aaj raat mai apne" Simte lamhen" is blog pe 'Aisibhi mayen hoti hain' is sheershak tahat ek sansmaran likhne ja rahi hun..zaroor padhen..khushi hogi..

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  2. http://simtelamhen.blogspot.com
    Yah hai URL.

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  3. आदरणीय भाई साहब!
    संवेदना किसी साहित्यकार की असली पूंजी होती है जिसके बल पर वह कालजयी कृति की सर्जना करने में सफल होता है। कालांतर में लाखों-करोंड़ों लोगों को उसे पढ़ कर प्रेरणा मिलती है। संवेदनशील व्यक्ति ही दूसरे के चेहरे पर लिखी पीड़ा की इबारत को पढ़ पाता है। परपीड़ा को पढ़ने की आपमें सामर्थ्य है। आंशिक रूप से सही आप उसकी पीर को कम करने में सफल हुए। आपका प्रयास स्तुत्य है।
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  4. आजकल समाज में ऐसे ही दोहरे मापदंड घर कर चुके हैं ।
    आपने सही आइना दिखाया अध्यक्ष जी को ।

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  5. bilkul sahi kiyaa aapne aur samaj ko bhi ek achcha sandesh diya.......kisi na kisi ko to aawaz uthani hi padegi tabhi badlaav aata hai.

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  6. आपने बिल्कुल सही किया है और इस सच्चे और नेक काम के लिए आपको दुआ अवश्य मिली होगी!

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  7. आप इतनी दूर तक सोचते हैं, इतना व्यावहारिक सोचते हैं जानकर, पढ़कर खुशी हुई। गरीबों के नाम पर शब्दों का दंगल करने वालों को आपके इस प्रयास से तमाचा लगा। दरअसल समाज में कथनी और करनी में अंतर करने वालों की एक बड़ी जमात है। इस अंतर को कम कर लोगों को एक अलग चश्मे से देखने को मजबूर करने के लिए हम आपके शुक्रगुजार हैं।

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