आपाधापी में निष्ठा के तार बदल जाते हैं। अहा क्या बात है शास्त्री जी। बहुत ख़ूब कहा, नौका खेने वाले खेवनहार बदल जाते हैं। वाह वाह। खटीमा के सफल आयोजन के लिए वहाँ उपस्थित सभी ब्लॉगर्स और साहित्य विभूतियों को हमारी ओर से बधाइयाँ और मकर संक्रांति पर्व पर शुभकामनाएँ। नितिन भाई को बहुत बहुत धन्यवाद इस सुखद कैमराकैद के लिए। उनका मोबाइल कैमरा बड़ा उम्दा है क्योंकि बहुत साफ़ और अच्छी शूटिंग हुई। आभार इस क्लिप के लिए।
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वाह वाह जी मजे दार.हमे तो ललित जी याद आ गये आप का कविता पाठ सुन कर. धन्यवाद
ReplyDeleteआपाधापी में निष्ठा के तार बदल जाते हैं। अहा क्या बात है शास्त्री जी। बहुत ख़ूब कहा, नौका खेने वाले खेवनहार बदल जाते हैं। वाह वाह। खटीमा के सफल आयोजन के लिए वहाँ उपस्थित सभी ब्लॉगर्स और साहित्य विभूतियों को हमारी ओर से बधाइयाँ और मकर संक्रांति पर्व पर शुभकामनाएँ। नितिन भाई को बहुत बहुत धन्यवाद इस सुखद कैमराकैद के लिए। उनका मोबाइल कैमरा बड़ा उम्दा है क्योंकि बहुत साफ़ और अच्छी शूटिंग हुई। आभार इस क्लिप के लिए।
ReplyDeleteकाव्य पाठ सुनना अच्छा लगा।
ReplyDeleteअच्छा लगा , कविता भी और सम्मलेन की तैयारी भी ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कवि सम्मेलन रहा। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
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डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
कंगाली में आटा गीला , भूख बहुत लगती है । वाह , वाह शास्त्री जी , क्या बात कही है ।
ReplyDeleteरिकोर्डिंग भी बहुत साफ़ है ।
आनंद आ गया सुनकर और देखकर ।
यू टयूब पर कविता अपलो
ReplyDeleteड करने की प्रेरणा मिली। धन्यवाद।
bahut sundar ShastriJi. APke blog se kafi prerna milti hai.
ReplyDelete--- मयंक मिश्र