परोक्षे कार्यहन्तारं, प्रत्यक्षे प्रियवादिनम। वर्जयेत् तादृशं मित्रं, विषकुम्भं पयोमुखम्।। |
अनुवाद:- जो पीठ पीछे कार्य में बाधा डाले और सम्मुख आने पर मीठी-मीठी बातें करे। उस मित्र को त्याग देना चाहिए। वह उस घड़े के समान होता है जिसके भीतर विष भरा होता है और उसके मुँह में दूध लगा होता है! |
यावद् भयेत् भेतव्यं, तावद् भयं अनागतम्। आगतं तु भयं दृष्ट्वा, प्रहृतव्यं किं शंकयाः।। |
अनुवाद:- तब तक भयभीत न हों, जब तक भय सामने नही आ जाता। जैसे ही भय सामने आता दिखाई पड़े, उसका मुकाबला करने में कैसी शंका ? अर्थात् भय से भयभीत नही होना चाहिए! |
उद्यमेन हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मुखे मृगाः।। |
अनुवाद:- कार्य परिश्रम से सिद्ध होते हैं, मनोरथ से नही। क्योंकि सोये हुए जंगल के राजा शेर के मुख में भी हिरण स्वयं आकर प्रविष्ट नही होते हैं। |
रूपयौवनसम्पन्नाः, विशालकुलसम्भवाः। विद्याहीनाः न शोभन्ते, निर्गन्धाः इव किंशुकाः।। |
अनुवाद:- रूप और यौवन से सम्पन्न, विशालकुल में जन्म लेने वाला भी बिना विद्या के सुशोभित नही होता। वह उस टेसू के फूल के समान होता है। जिसमें रूप तो होता है परन्तु सुगन्ध नही होती! |
विद्वत्त्वं च नृपत्वं च, नैव तुल्यं कदाचन्। स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।। |
अनुवाद:- विद्वान् और राजा की कभी भी तुलना नही की जा सकती। क्योंकि राजा केवल अपने देश में पूज्य होता है और विद्वान की सर्वत्र पूजा की जाती है। |
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Saturday, 27 March 2010
“उपयोगी शिक्षाएँ” (अनुवादकः शास्त्री “मयंक”)
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ज्ञानवर्धक !!!!
ReplyDeleteBehad achhe shlok hain..sach,ye mukhodgat hone chahiyen !
ReplyDeleteआभार सदविचारों का.
ReplyDeleteविचारोत्तेजक!
ReplyDeleteBehad upyukt aalekh aur behtareen subhashit!
ReplyDeleteसद्विचार।
ReplyDeleteआभार इस ज्ञानवर्धन के लिए शास्त्री जी।
नमस्कार
ReplyDeleteगत वर्ष आप मेरे ब्लॉग पर आए थे तथा "महावीर भगवान" पर रचित कविता की अनुशंसा की थी।
आपके स्नेह और शुभकामनाओं से मैंने अपने ब्लॉग को वेबसाइट में रूपांतरित कर दिया है।
इस वेबसाइट पर आपको निरंतर अच्छी और सच्ची कविताएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी।
आपके सुझाव तथा सहयोग अपेक्षित है।
कृपया एक बार विज़िट अवश्य करें
www.kavyanchal.com
बहुत सुन्दर, धन्यवाद!
ReplyDeleteaapka yah kaary badaa sukun dene vala hai....aur mujhe ise padhkar aseem shaanti mili.....sach....!!
ReplyDeletehttp://baatpuraanihai.blogspot.com/
ReplyDeleteअरे.....रे.....रे.....रे.....कहाँ चले गए रूप जी.........??ये लीजिये मैंने रंग बदल लिया.....भूत तो था ही अब गिरगिट भी बन गया.....
अब आपको मुझे दीदे फाड़-फाड़ कर नहीं देखना पडेगा.....मगर आप दुबारा आओ तब ना.....भूत के ब्लॉग पर लोग आने से बहुत दारा करते हैं... क्यूंकि शायद बीती हुई खूंखार चीज़ों से लोग डरते हैं....मगर आप तो इक उम्र गुजार चुके हो....अब आज से आपको मेरा साथ देना पडेगा.....!! आओगे ना आप ओ रूप जी...नहीं नहीं....शास्त्री जी....अरे नहीं नहीं....मयंक जी .....अरे नहीं भई .....गुरूजी....अरे हाँ गुरूजी.....आपको पांव धोक
प्रणाम.....सादर नमस्कार.....अब ठहाका लगाकर हंस भी दो ना.....हा....हा....हा....हा....हा.....!
Nice
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