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Tuesday, 26 January 2010

“तब और अब” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

(श्रीमती रजनी माहर)


तब

रुपये किलो था आटा,
अब है कितना घाटा,
नानी संग जाती बाजार,
नौ रुपये किलो था अनार,
एक रुपये में
दो किलो ज्वार,
गेहूँ चावल की
भरमार,
कम मिलती थी बहुत पगार,
कभी न होते थे
बीमार,
तन चुस्त थे
मन दुरुस्त थे,
थोड़े में
सब लोग मस्त थे,
दूध-दही सब
कुछ था शुद्ध
वातावरण

प्रदूषण-मुक्त
IMG_0618
अब

टमाटर गुस्से से लाल हैं
जेबें खस्ता हाल हैं,
गरीब का थाली में-
दाल है ना भात है,
नकली सामान की-
भरमार है,
मिठाई से
मिठास गायब है,
लाली से
पुते हुए लब हैं,
मँहगाई की
चौतरफा मार है,
पीजिए हुजूर!
यूरिया के दूध वाली-
चाय तैयार है!!
(श्रीमती रजनी माहर)

11 comments:

  1. आपने सही भेद दिखाया है तब और अब का ..... समय कितना बदल गया है ..... बहुत खूब .......... आपको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई ....

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  2. Dua karti hun,ki, ye haal kabhi badlega!
    Gantantr diwas kee anek shubhkamnayen!

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  3. सही तुलना है। समय तो बदलता ही है।
    लेकिन इस तरह नहीं । दूध में यूरिया !
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।

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  4. यह शब्दों का दंगल सचमुच बहुत खूब है। आदमी के लालच नें बंटाधार कर दिया है। आपकी अभिव्यक्ति काबिले तारीफ है।

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  5. जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभ कामनाएँ

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  6. Really appropriate according to time.

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  7. सही वक़्त पर आपने सही तुलना किया है! बहुत बढ़िया लगा ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!

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  8. Mahatma ko madde nazar rakh ek rachna post kee hai:
    http://kavitasbyshama.blogspot.com

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