(श्रीमती रजनी माहर)
तब रुपये किलो था आटा, अब है कितना घाटा, नानी संग जाती बाजार, नौ रुपये किलो था अनार, एक रुपये में दो किलो ज्वार, गेहूँ चावल की भरमार, कम मिलती थी बहुत पगार, कभी न होते थे बीमार, तन चुस्त थे मन दुरुस्त थे, थोड़े में सब लोग मस्त थे, दूध-दही सब कुछ था शुद्ध वातावरण प्रदूषण-मुक्त
| अब टमाटर गुस्से से लाल हैं जेबें खस्ता हाल हैं, गरीब का थाली में- दाल है ना भात है, नकली सामान की- भरमार है, मिठाई से मिठास गायब है, लाली से पुते हुए लब हैं, मँहगाई की चौतरफा मार है, पीजिए हुजूर! यूरिया के दूध वाली- चाय तैयार है!! (श्रीमती रजनी माहर)
|
आपने सही भेद दिखाया है तब और अब का ..... समय कितना बदल गया है ..... बहुत खूब .......... आपको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई ....
ReplyDeletebahut badhiya shastri ji!
ReplyDeleteDua karti hun,ki, ye haal kabhi badlega!
ReplyDeleteGantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
सही तुलना है। समय तो बदलता ही है।
ReplyDeleteलेकिन इस तरह नहीं । दूध में यूरिया !
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें।
behtreen prastuti........aabhar
ReplyDeleteयह शब्दों का दंगल सचमुच बहुत खूब है। आदमी के लालच नें बंटाधार कर दिया है। आपकी अभिव्यक्ति काबिले तारीफ है।
ReplyDeleteजन्मदिन की बहुत-बहुत शुभ कामनाएँ
ReplyDeleteReally appropriate according to time.
ReplyDeleteसही वक़्त पर आपने सही तुलना किया है! बहुत बढ़िया लगा ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
ReplyDeleteMahatma ko madde nazar rakh ek rachna post kee hai:
ReplyDeletehttp://kavitasbyshama.blogspot.com
bahut achchi tulna
ReplyDelete