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Saturday, 23 January 2010

“संस्मरण” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

दादी चम्मच का प्रयोग किया करो!

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(चित्र गूगल सर्च से साभार)



आज से 45-50 साल पुरानी बात है। उन दिनों एक कबीले की संयुक्त हबेली हुआ करती थी। किसी घर में अच्छी साग-सब्जी बनती थी तो माँग कर खाने में बहुत आनन्द आता था।

उन दिनों मैं नजीबाबाद के मुहल्ला-रम्पुरा में रहता था। इसी हबेली में मेरी एक रिश्ते की दादी भी रहती थी। इवको सब गुलबिया दादी के नाम से जानते थे। जो स्वभाव की चिड़चिड़ी जरूर थीं लेकिन मन की बहुत अच्छी थीं। यदि आलस की बात करें तो यह दादी के स्वभाव में रचा-बसा था।

मुझे शुरू से ही कढ़ी बहुत पसन्द है। एक दिन गुलबिया दादी ने कढ़ी बनाई थी। बर्तन माँजने से बचने के लिए दादी रोटी के ऊपर ही कढ़ी रखकर खा रही थी। तभी मैं भी उनसे कढ़ी मागने के लिए जा धमका और दादी से कहा- “दादी मुझे कढ़ी दे दो!”

दादी के हाथ में कढ़ी लगी थी। उसने जीभ से चाट कर अपना हाथ साफ किया और जा पहुँची कड़ाही के पास। जल्दी में चमचा नही मिला तो जूठे हाथ से ही कढ़ी मेरी कटोरी में ड़ाल दी।

मैंने कहा- “दादी हाथ तो धोकर साफ कर लिया होता।”

इस पर दादी ने उत्तर दिया- “भैया! हाथ चाटकर तो साफ कर लिया था। देख मेरे हाथ में कुछ लगा है क्या?”

मैंने कहा- “दादी! हाथ तो साफ है लेकिन जूठन तो लगा ही है।”
साथ ही दादी को नसीहत भी दी कि दादी खाने और परोसने में चम्मच का इस्तेमाल किया करो!

घर आकर जब मैंने अपनी माता जी को दादी की बात सुनाई तो उन्होंने मेरे हाथ से कटोरी लेकर भैंस की सानी में यह झूठी कढ़ी डाल दी और मेरे लिए तुरन्त कढ़ी बना कर दी!

इस संस्मरण को लगाने का मेरा उद्देश्य यह है कि -


“किसी का भी झूठा न तो हमें खुद खाना चाहिए और न किसी दूसरे को खिलाना चाहिए!”

7 comments:

  1. शास्त्री जी, बात तो सही है।
    लेकिन बड़े बड़े शहरों में रेस्तरां में खाना कैसे बनता है और परोसा जाता है , ये सब परदे के पीछे होता है।
    अब खाने वाले को तो कुछ पता नहीं होता की इसके साथ क्या क्या हुआ होगा।
    बस आँख मूँद कर खा लेते हैं।

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  2. काम की बात! अच्छा संस्मरण।

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  3. बहुत सुंदर संस्मरण।
    पहले बहुदा देखा जाता था कि लाड़-प्यार में बच्चों को अपना जुट्ठा किला देते थे जिससे उनमें भी एक गलत आदत पड़ जाती थी।

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  4. sahi kaha aapne.........swachchhta ka bhi to dhyan rakhna jaroori hai.

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  5. बहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण धन्यवाद

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  6. Sundar sansmaran,jo mujhe apne gaanv ke gharkee yaad dila gaya!
    Gantantr diwas mubarak ho!

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