दादी चम्मच का प्रयोग किया करो! |
(चित्र गूगल सर्च से साभार) आज से 45-50 साल पुरानी बात है। उन दिनों एक कबीले की संयुक्त हबेली हुआ करती थी। किसी घर में अच्छी साग-सब्जी बनती थी तो माँग कर खाने में बहुत आनन्द आता था। दादी के हाथ में कढ़ी लगी थी। उसने जीभ से चाट कर अपना हाथ साफ किया और जा पहुँची कड़ाही के पास। जल्दी में चमचा नही मिला तो जूठे हाथ से ही कढ़ी मेरी कटोरी में ड़ाल दी। मैंने कहा- “दादी हाथ तो धोकर साफ कर लिया होता।” इस पर दादी ने उत्तर दिया- “भैया! हाथ चाटकर तो साफ कर लिया था। देख मेरे हाथ में कुछ लगा है क्या?” मैंने कहा- “दादी! हाथ तो साफ है लेकिन जूठन तो लगा ही है।” घर आकर जब मैंने अपनी माता जी को दादी की बात सुनाई तो उन्होंने मेरे हाथ से कटोरी लेकर भैंस की सानी में यह झूठी कढ़ी डाल दी और मेरे लिए तुरन्त कढ़ी बना कर दी! इस संस्मरण को लगाने का मेरा उद्देश्य यह है कि - “किसी का भी झूठा न तो हमें खुद खाना चाहिए और न किसी दूसरे को खिलाना चाहिए!” |
शास्त्री जी, बात तो सही है।
ReplyDeleteलेकिन बड़े बड़े शहरों में रेस्तरां में खाना कैसे बनता है और परोसा जाता है , ये सब परदे के पीछे होता है।
अब खाने वाले को तो कुछ पता नहीं होता की इसके साथ क्या क्या हुआ होगा।
बस आँख मूँद कर खा लेते हैं।
काम की बात! अच्छा संस्मरण।
ReplyDeleteबहुत सुंदर संस्मरण।
ReplyDeleteपहले बहुदा देखा जाता था कि लाड़-प्यार में बच्चों को अपना जुट्ठा किला देते थे जिससे उनमें भी एक गलत आदत पड़ जाती थी।
sahi kaha aapne.........swachchhta ka bhi to dhyan rakhna jaroori hai.
ReplyDeletebahut achha lekh shastri ji..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण धन्यवाद
ReplyDeleteSundar sansmaran,jo mujhe apne gaanv ke gharkee yaad dila gaya!
ReplyDeleteGantantr diwas mubarak ho!