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Thursday 10 December 2009

"यही है हमारा स्तर??" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

हिन्दी ब्लॉगरों में आखिर साहित्यकारों के प्रति 
इतनी अरुचि क्यों है?
बात तो समझ मे खूब आ रही है जी!
गधे की पूँछ में कनस्तर बाँधकर दौड़ाने से
बेतहाशा भीड़ इकट्ठी हो जाती है,
ऐसी पोस्ट पर कमेण्ट भी थोक में आते हैं।
उदाहरण देखें-
लखनऊ में ब्लॉगर दंगा: 
सलीम खान और उम्दा सोच वाले सौरभ के बीच घमासान युद्ध.. comments:84 
"कवि त्रिलोचन को भाव-भीनी श्रद्धाञ्जलि" comments:4 only

जी हाँ यही तो है हमारा स्तर!

25 comments:

  1. मयंक जी पूरा ब्लाग जगत साहित्य क्षेत्र नहीं है ये अभिव्यक्ति के लिये एक खुला मन्च है। सभी की साहित्य मे रुची नहीं होती। योँ भी जरूरी नहीं सबकी मज़र रोज़ की पोस्ट पर पडती ही हो। सही साहित्यकार के पास इतना समझी कब होता है कि वो हर पोस्ट देखे वैसे भी जो अच्छे साहित्यकार हैं इस ब्लागजागत मे वो न तो टिप्पणी करते हैं और न ही आपेक्षा करते हैं टिप्पणियों की। वो तो हम जैसे लोग हैं जो टिप्पणियां करते हैं और आपेक्षा भी करते हैं। लेकिन एक साहित्यकार के निधन पर कोई बडा साहित्यकार ही न बोले तो जरूर दुखदायी है। अपने सवाल सही उठाया है । धन्यवाद्

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  2. yahi toh takleef hai mayank ji !

    jinse hamaara koi seedha sarokaar nahin hota, hamaari samvednaayen bhi unse nahin jud paatin

    trilochan ji toh eeteje bhi badi upeksha ka shikaar ho gaye the..koi pahla mudaahran nahin hai ye

    qamar jalaalabaadi jaisa badaa shayar mumbai me khairaati hospital me bharti rahe aur koi khair - khabar tak nahin lene gaya...

    afsos !
    bahut afsos !

    aur sharm bhi ki main bhi kuchh nahin likh payaa............

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  3. आदरणीय शास्त्री जी....

    सादर, नमस्कार
    व चरणस्पर्श...

    मैं आपसे हाथ जोड़ के माफ़ी मांग रहा हूँ. मुझसे गलती हुई जो मैंने ऐसी पोस्ट डाली, आपके समझाने के बावजूद मैंने वो पोस्ट रहने दी क्यूंकि काफी लोगों ने कहा कि अब उसे डिलीट करने का कोई मतलब नहीं है, तीर कमान से निकल चुका है, इसलिए उसे डिलीट नहीं किया. आपसे दोबारा इसलिए बात नहीं कर पाया क्यूंकि आपसे नज़र नहीं मिला पाया. जब एक बेटा गलती करता है और पिता उसको समझाता है और बेटा जब बात नहीं सुनता तो अंत में उसको पछताना ही पड़ता है, फिर बेटा पिता से नज़र नहीं मिला पाता है. मुझे माफ़ कर दीजियेगा , आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं होगी, यह मेरा आपसे वादा है. मैं अपना स्तर बनाये रखूँगा.

    अंत में ... कृपया इस बेटे कि पहली गलती समझ कर दिज्यिएगा..... दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी.

    सादर

    महफूज़..

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  4. आदरणीय शास्त्री जी....

    सादर, नमस्कार
    व चरणस्पर्श...

    मैं आपसे हाथ जोड़ के माफ़ी मांग रहा हूँ. मुझसे गलती हुई जो मैंने ऐसी पोस्ट डाली, आपके समझाने के बावजूद मैंने वो पोस्ट रहने दी क्यूंकि काफी लोगों ने कहा कि अब उसे डिलीट करने का कोई मतलब नहीं है, तीर कमान से निकल चुका है, इसलिए उसे डिलीट नहीं किया. आपसे दोबारा इसलिए बात नहीं कर पाया क्यूंकि आपसे नज़र नहीं मिला पाया. जब एक बेटा गलती करता है और पिता उसको समझाता है और बेटा जब बात नहीं सुनता तो अंत में उसको पछताना ही पड़ता है, फिर बेटा पिता से नज़र नहीं मिला पाता है. मुझे माफ़ कर दीजियेगा , आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं होगी, यह मेरा आपसे वादा है. मैं अपना स्तर बनाये रखूँगा.

    अंत में ... कृपया इस बेटे कि पहली गलती समझ कर माफ़ कर दिज्यिएगा..... दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी.

    सादर

    महफूज़..

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  5. शास्त्री जी,
    बात आपकी सोलह आने सच है, लेकिन ब्लॉगिंग ही क्यों और भी किसी फील्ड में साहित्यकारों या बीते कल के कलाकारों को याद करने की फुर्सत किसे है...कल हिंदी कविता के मनीषी रघुवीर सहाय जी की अस्सीवीं जयंती थी...कहीं किसी को सुध नहीं...मुझे आज अपनी पोस्ट...हो सके तो भूल जाना...खुशदीप...में रघुवीर जी की एक कविता पढ़ाने के लिए गिमिक का सहारा लेना पड़ा...

    रही बात महफूज़ की...ये अतिरेक में कभी कभी ऐसी बात कर जाता है कि इसे बाद में खुद ही बड़ा पछतावा होता है...ये भी सच है कि महफूज़ कुछ लुका-छुपा कर नहीं रखता...जो दिल में होता है तड़ाक से शब्दों में उतार देता है...इस कथित पोस्ट पर मेरी अगले ही दिन फोन पर महफूज़ से बात हुई थी...वो उस वक्त ही कह रहा था कि बड़ी गलती हो गई है...बड़े भाई के नाते मैंने यही सलाह दी थी कि नफ़रत की आग पर पेट्रोल छिड़कने वालों से हमेशा मीलों दूर रहा करे...इसलिए शास्त्री जी आपसे निवेदन हैं कि महफूज़ को नादान समझ कर इस गलती के लिए माफ कर दीजिए...

    जय हिंद...

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  6. shastri ji,
    nirmala ji ne sahi kaha hai ........vaise bhi blogger hain yahan sahitykar nhi to kitne honge jinhein unke bare mein jankari hogi.......magar koi aam mudda uthata hai to wahan log chale jate hain dilchaspi ke liye jisse wahan comment aa jate hain ...........baat comments ki nhi hai baat jankari ki hai .......aaj jankari ka abhav hai jis wajah se log anbhigya rah jate hain.......ab hum jaise blogger bahut hain jinhein pata hi nhi hota magar jab pata chalta hai to wahan jate bhai hain.vaise aap apni jagah bilkul sahi hain .........aapne prashn bhi sahi uthaya hai aur hamesha nayi kitni hi jankariyan hamein aapke hi madhyam se mili hain.

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  7. बिल्कुल सही कहा आपने.......टिप्पणियों की ज़रूरत जहाँ है यानि विचारों को प्रेषित करने की ज़रूरत जहाँ है, उसे लोग देखते भी नहीं.
    पढने में कोई दिलचस्पी नहीं

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  8. आज मैं कुछ नहीं बोलूंगा !

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  9. कनस्टर वाली बात सच है। प्रायः लोगों की रुचि (मेरी भी)मसालेदार भोजन में होती है,स्वास्थ्यप्रद में नहीं। बच्चों को पढ़ाते समय भी ध्यान रखना पड़ता था कि विषय रुचिकर बना रहे। टी वी पर भी देखिए चर्चा फालतू बातों की अधिक होती है।
    एक नया राज्य बनने जा रहा है, कोई उसके इतिहास,यह माँग कितनी पुरानी है, आन्ध्र व तेलंगाना की संस्कृति में क्या समानता व असामनता है, यह माँग क्यों है आदि पर चर्चा नहीं कर रहा। चर्चा हो रही है एक प्रसिद्ध खिलाड़ी की कितनी और प्रेमिकाएँ सामने आईं। जबकि इसमें उसकी पत्नी की ही रुचि होनी चाहिए।
    घुघूती बासूती

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  10. सच्चा साहित्यकार कभी टिप्पणियों का मोहताज़ नहीं होता...वैसे भी आज के दौर में साहित्य पढता कौन है...
    नीरज

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  11. शास्त्री जी , आपकी बात सोलह आने सही है। आख़िर , ब्लोगर्स में सब तरह के लोग हैं। सब तो एक जैसे नही हो सकते। इसलिए निर्मला जी और खुशदीप की बात में भी दम है।
    लेकिन हम तो अपनी संतुष्टि के लिए लिखते हैं, और ये भी पता चल जाता है की कितने लोगों ने पढ़ा। यही उद्देश्य भी है।
    जहाँ तक टिपण्णी की बात है, तो जो दे उसका भी भला , जो न दे उसका भी भला।
    वैसे महफूज़ से गलती हो गई, और वो शर्मिंदा भी हैं।

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  12. नीरज जी ने सच कहा सच्चा साहित्यकार टिप्पणी का मोहताज़ नहीं होता! उसे तो बस अपनी रचना से संतुष्टि मिलाती है !!

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  13. नीरज गोस्वामी जी से सहमत 'सच्चा साहित्यकार कभी टिप्पणियों का मोहताज़ नहीं होता..' और अगर मोहताज है तो हमें बताए, उसकी इच्‍छा हम पूरी कर सकते हैं, हम एक सांस में 10 टिप्‍पणी कर देते हैं, दूसरी में 15 ..... और अपने मुँह से क्‍या कहें सब जाने हैं

    मयंक जी आपने दो-चार लाइनों में बहुत कुछ कह दिया, मैं सुबह से बैचेन था इधर कुछ लिखने को सो लिख दिया

    हैप्‍पी ब्‍लागिंग
    कभी अवध जाऐं तो हमें सूचित किजिएगा

    अवधिया चाचा
    जो कभी अवध ना गया

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  14. गुरुदेव,
    टिप्पणी का खेल वस्तुतः ब्लॉग जगत की गंदगी ही तो है, जिसने हमेशा बेवजह विवादों को जन्म नहीं दिया अपितु हिन्दी को अपमानित भी किया है, ब्लोगिंग एक विचारोंमुखी आजादी है और ये आजादी होने पर साहित्य नहीं अपितु विचार आते हैं.
    आप ये बिलकुल मत मान कर चलिए कि किसी के पोस्ट पर टिप्पणी की भरमार है तो वो अच्छा लेखक या साहित्यकार है. बेहतर रचना पर टिप्पणियां नहीं होती हैं और जहाँ होती हैं वहां बाकायदा मांग कर चेप्पी गयी होती है और हाँ इस से ब्लॉग जगत अनजान भी नहीं है.

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  15. आपकी चिंता जायज है...गंभीर लेखन को पढने में किसी की दिलचस्पी नहीं है...लेकिन ज्यादातर लोग यहाँ मनोरन्जन के ख्याल से आते हैं...अगर कुछ थोड़े से लोग ही अच्छे लेख की सराहना कर जाते हैं तो लेखक को इसी से संतुष्ट हो जाना चाहिए.

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  16. शास्त्रीय गायन के एल्बम बहुत कम सुने जाते हैं, फ़िल्मी गाने बहुत अधिक.. अपनी अपनी पसंद. पर अगर हम फ़िल्मी गाने सुनने वालों को निम्स्तरीय कहना शुरू कर दें तो यह जनता और जनता की पसंद का अपमान होगा. मास और क्लास का अंतर हमेशा था और हमेशा रहेगा, बताइए की किस ज़माने में जनता की पसंद स्तरीय रही है? आज़ादी से पहले भी गांधीजी ब्रह्मचर्य के प्रयोगों किस्से जिन अख़बारों छपते थे उनकी बिक्री बेतहाशा बढ़ जाती थी, उसी कालखंड में प्रेमचंद की हंस पत्रिका घटे के कारण बंद हो गई.

    स्केंडल-सेक्स-अपराध-सनसनी-ग्लैमर हमेशा से लोगों का सादी ख़बरों से ज्यादा ध्यान खींचते आये है, यह तथ्य शायद आज आपको पता चला है.

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  17. संदर्भित पहली पोस्ट तो न देख सका !
    दूसरी पोस्ट , अच्छी पोस्ट!
    रही बात स्तर की तो ..सबको अपने बारे में पता है .. / होना चाहिए !
    और क्या कहूँ !

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  18. शास्त्री जी,
    प्रणाम.....
    मैंने स्वयं को कभी भी लेखिका या कवीत्री नहीं समझा है.......मैं क्या हूँ आज तक नहीं जान पायी हूँ....
    कभी कोशिश भी नहीं करती हूँ जानने की, जब से यह मंच मिला है बस स्वयं को अभिव्यक्त किया है....अपने विचार और अपने मन की बातें...
    हिंदी ब्लॉग जगत में भी ज्यादातर यही देख रही हूँ...सभी अपनी अपनी बातें , अपने अपने मन कि ही कह रहे हैं....जिससे कुछ सृजन अवश्य हो रहा है...अब वो क्या है नहीं मालूम
    क्यूंकि मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि साहित्य क्या है...???
    साहित्य कि परिभाषा क्या है ???
    क्या गुलज़ार जो आज कल लिख रहे हैं "कमीना" वो साहित्य के अंतर्गत आता है ???
    आप सब लोग मुझसे बहुत बेहतर जानते हैं .....निश्चित तौर पर विद्वान् है.....इसलिए आपलोगों से यह प्रश्न है..कृपया आप सुधीजनों से उत्तर कि अपेक्षा है...
    क्या मात्र क्लिष्ट हिंदी में लिखना साहित्य है...??

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  19. मैं भी निर्मलाजी की बात से सहमत हूँ कि सम्‍पूर्ण ब्‍लाग जगत साहित्‍य क्षेत्र नहीं है। यहाँ साहित्‍यकार तो चंद ही हैं। साहित्‍यकारों की भी दो श्रेणियां हैं। एक वे हैं जो साहित्‍य के व‍िद्यार्थी हैं और दूसरे वे जो स्‍वयं साहित्‍य लिखते हैं। इसलिए वरिष्‍ठ साहित्‍यकारों का स्‍मरण विद्यार्थी तो करते हैं लेकिन जो हिन्‍दी साहित्‍य के विद्यार्थी न होकर स्‍वयं में साहित्‍यकार हैं, उन्‍हें इसका बोध नहीं रहता। वैसे टिप्‍पणी उसी की आती है जिसे आपकी बात अच्‍छी लगती है। हम सभी को बाध्‍य तो नहीं कर सकते। मैंने ऐसी पोस्‍ट भी देखी हैं जिसके टाइटल से ही वो अश्‍लील प्रतीत हो रही थी, उस पर सर्वाधिक टिप्‍पणियां देखी गयी थी। फिर लिखने वाले ने दुबारा अपनी पोस्‍ट इसी बात पर लिखी कि अच्‍छी तो पिट जाती हैं और ऐसी हिट हो जाती हैं। यही हमारा समाज है।

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  20. ब्लोग पर ही क्यों.. हमारा स्तर तो हर जगह गिरा हुआ है....

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  21. दुर्बल पौधों को ही ज्यादा,
    पानी-खाद मिला करती है।

    चालू शेरों पर ही अक्सर,
    ज्यादा दाद मिला करती है

    सूखे पेड़ों पर बसन्त का,
    कोई असर नही होता है-

    यौवन ढल जाने पर सबकी,
    गर्दन बहुत हिला करती है।।

    आप सभी सुधि टिप्पणीकारों का धन्यवाद!

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  22. शास्त्री जी, आपकी बातों से सहमत होते हुए केवल एक प्रश्न .... क्या टिप्पणियां ही सफ़ल लेख का पैमाना है???

    जहां उत्कृष्ट लेख छप रहे हैं और टिप्पणीयां नगण्य है, क्या वे लेखन बंद कर दें ???

    क्षमा चाहता हूं दो प्रश्न हो गए:)

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  23. ...Ab to sansanikhej cheejen hi bik rahi hain. Jaswant, khuswant, shobha-de ke samne Sahityakar kahan tik pa rahe hain...???

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