महाकवि कालिदास ने कहा है-"उत्सवप्रियाः मानवाः" इसलिए हमें भी हर साल दिवाली का इन्तजार रहता है लेकिन हमारे पोते-पोती को नानकमत्ता में दीपावली पर 10 दिनों तक लगने वाले मेले का।
इस साल भी दीवाली क्या आई हमारी तो नाक में दम कर दिया इन छोटे-छोटे घर के दीपकों ने।
सच बात तो यह है कि हमें भी इस दीवाली मेले का इन्तजार रहता है। मेरी धर्मपत्नी अमरभारती जी तो कहती हैं कि अपने शहर में तो फुटपाथ से सामान खरीदते हुए शर्म लगती है। इसलिए मेले में यह इच्छा पूरी हो जाती ह।
आराम से मोल-भाव करने और सामान खरीदने का मज़ा ही कुछ और है।
कल भी हम तो मेले में फोटो ही खींचते रह गये और इन्होंने जमकर करीदारी कर ली। पचास रुपये में बोन चायना के 6 कप, 5-5 रुपयो वाली चाय छानने की छलनी, सस्ते रबड़ बैण्ड, चमचे ट्रे, 70 रुपये की दो कमीजें दोनों बेटों के लिए और न जाने क्या-क्या खरीदा।
लेकिन इतनी बात तो है कि सामान सब बढ़िया और उपयोगी खरीदा। जिससे हमारी भी जेब पर अधिक भार नही पड़ा।
मेले में एक पुलिस के दरोगा जी हमारे परिचित ही मिल गये और वो हमें मेला पुलिस कोतवाली में ले गये। चाय-नाश्ता भी कराया और चलते समय बच्चों को 10 फ्री पास भी दे दिये। लगभग सभी खेल-तमाशे और झूलों का आनन्द बच्चों ने ही नही पूरे परिवार ने मुप्त में उठाया।
आप भी देखिए नानकमत्ता के दीपावली मेले के कुछ चित्र!
अब शाम घिर आई थी घर चलने की जल्दी थी। मगर मेरी छोटी बहन जो भइया दूज पर हमारे घर आई हुई थी। वह मेले में गुम हो गई। अब सभी लोग लगे उसको ढूँढने में। चिन्ता तो यह नही थी कि वो खो जायेगी लेकिन सवाल यह था कि उनको साथ लेकर आये थे तो साथ ही ले भी जाना था। हमारे साथ उनका बड़ा पुत्र जो कालेज में प्रवक्ता है वो भी आया हुआ था। मम्मी के गुम होने के कारण वह खासा परेशान था। 3-4 किमी. मे फैले मेले में उनको काफी ढूँढा गया मगर वो नही मिली।
गनीमत यह रही कि हमारे भानजे ने अपनी मम्मी को अपना मोबाइल दे दिया था।
लगभग एक दर्जन मिसकाल इस मोबाइल पर की गयीं। मगर मोबाइल नही उठा।
हम लोग परेशान होकर कार में बैठ गये कि घर जाकर पता करेंगे कि बहन जी कहीं घर ही तो नहीं चलीं गई होंगी।
तभी एक कॉल आई कि भइया मैं मेले के बाहर आकर नानक मत्ता के बिजलीघर वाले चौराहे पर आ गई हूँ। क्योंकि मैं रास्ता भूल गई थी।
अब हमारी जान में जान आई। बहन जी को 3 किंमी दूर नानक मत्ता के बिजलीघर वाले चौराहे से लिया और शाम को 7 बजे तक खटीमा आ गये। |
मतलब ये कि मेले मे जो जो होना चाहिये वो सभी हो गया……………मेले का आनन्द तो लिया ही और बिछडने का भी जैसा कि पहले कभी सुना करते थे कि ऐसा अक्सर मेलों मे होता है……………याद रहेगा फिर तो इस बार का मेला……………बेहतरीन चित्रण्।
ReplyDeleteजमकर खरीदारी , १० फ्री पास और फोटोग्राफी करते हुए मेले में घूमना --वाह शास्त्री जी , यह तो मौज़ हो गई । यहाँ तो मेले अब लगते ही नहीं ।
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण ।
सभी चित्र जानदार...........
ReplyDeleteबढ़िया टेम्पलेट सर जी!
ReplyDeleteमयंक जी, मेला घुमाने का शुक्रिया।
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इंटेलीजेन्ट ब्लॉगिंग अपनाऍं, बिना वजह न चिढ़ाऍं।
वाह दूसरे फ़ोटो में पाबला जी को देख चकरा रिया हूं
ReplyDeleteमिसफ़िट पर ताज़ातरीन
bahut manoranjak lekh.
ReplyDeletemele ka poora aanand hume to ghar baithe hi aa gaya.jeevant prastuti !
ReplyDeleteaadarniya sir,
ReplyDeletepahale to mujhe is mele ki jankaari hi nahi thi shayad mere parivaar me bhi kisi ko nahi ,par ab ho gai hai.
sach me mele ka maja to roj -roj ke shoping se hat kar jo hota hai uska aanand to kuchh aur hi hota hai.aapke mela ghumne ke vivran ko padh kar -v-
chitro ko dekh kar hamne bhi pure me le kamaja ghar baithe liya.
aap bahut dino baad mere blog par aaye ,is baat ki bhi mujhe bahut khushi hui.
hardik abhnandan karti hun---
poonam
किसी का मेले मे खोना तो मेले का असली रंग है? ऐसे मेल अब शहरों मे कहाँ मिलते हैं और न इतनी सस्ती चीज़ें। बधाई आपको व भाभी जी को।
ReplyDeleteShri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji
ReplyDeleteशास्त्री जी ,
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद हम भी मेला घूम लिए ! मेलों से हमारी परम्पराओं की खुशबू आती है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ