समर्थक

Tuesday 9 November 2010

“नानकमत्ता का मेला”


नानकमत्ता का दीपावलीमेला

महाकवि कालिदास ने कहा है-"उत्सवप्रियाः मानवाः" इसलिए हमें भी हर साल दिवाली का इन्तजार रहता है लेकिन हमारे पोते-पोती को नानकमत्ता में दीपावली पर 10 दिनों तक लगने वाले मेले का।
इस साल भी दीवाली क्या आई हमारी तो नाक में दम कर दिया इन छोटे-छोटे घर के दीपकों ने।
nanakmatta melaसच बात तो यह है कि हमें भी इस दीवाली मेले का इन्तजार रहता है। मेरी धर्मपत्नी अमरभारती जी तो कहती हैं कि अपने शहर में तो फुटपाथ से सामान खरीदते हुए शर्म लगती है। इसलिए मेले में यह इच्छा पूरी हो जाती ह।
आराम से मोल-भाव करने और सामान खरीदने का मज़ा ही कुछ और है।
कल भी हम तो मेले में फोटो ही खींचते रह गये और इन्होंने जमकर करीदारी कर ली। पचास रुपये में बोन चायना के 6 कप, 5-5 रुपयो वाली चाय छानने की छलनी, सस्ते रबड़ बैण्ड, चमचे ट्रे, 70 रुपये की दो कमीजें दोनों बेटों के लिए और न जाने क्या-क्या खरीदा।
लेकिन इतनी बात तो है कि सामान सब बढ़िया और उपयोगी खरीदा। जिससे हमारी भी जेब पर अधिक भार नही पड़ा।
IMG_2432मेले में एक पुलिस के दरोगा जी हमारे परिचित ही मिल गये और वो हमें मेला पुलिस कोतवाली में ले गये। चाय-नाश्ता भी कराया और चलते समय बच्चों को 10 फ्री पास भी दे दिये। लगभग सभी खेल-तमाशे और झूलों का आनन्द बच्चों ने ही नही पूरे परिवार ने मुप्त में उठाया।
आप भी देखिए नानकमत्ता के दीपावली मेले के कुछ चित्र!
IMG_2434IMG_2435IMG_2437
IMG_2438
IMG_2440IMG_2443IMG_2445IMG_2444IMG_2446
IMG_2433अब शाम घिर आई थी घर चलने की जल्दी थी। मगर मेरी छोटी बहन जो भइया दूज पर हमारे घर आई हुई थी। वह मेले में गुम हो गई। अब सभी लोग लगे उसको ढूँढने में। चिन्ता तो यह नही थी कि वो खो जायेगी लेकिन सवाल यह था कि उनको साथ लेकर आये थे तो साथ ही ले भी जाना था। हमारे साथ उनका बड़ा पुत्र जो कालेज में प्रवक्ता है वो भी आया हुआ था। मम्मी के गुम होने के कारण वह खासा परेशान था। 3-4 किमी. मे फैले मेले में उनको काफी ढूँढा गया मगर वो नही मिली।
गनीमत यह रही कि हमारे भानजे ने अपनी मम्मी को अपना मोबाइल दे दिया था।
लगभग एक दर्जन मिसकाल इस मोबाइल पर की गयीं। मगर मोबाइल नही उठा।
हम लोग परेशान होकर कार में बैठ गये कि घर जाकर पता करेंगे कि बहन जी कहीं घर ही तो नहीं चलीं गई होंगी।
तभी एक कॉल आई कि भइया मैं मेले के बाहर आकर नानक मत्ता के बिजलीघर वाले चौराहे पर आ गई हूँ। क्योंकि मैं रास्ता भूल गई थी।
अब हमारी जान में जान आई। बहन जी को 3 किंमी दूर नानक मत्ता के बिजलीघर वाले चौराहे से लिया और शाम को 7 बजे तक खटीमा आ गये।

12 comments:

  1. मतलब ये कि मेले मे जो जो होना चाहिये वो सभी हो गया……………मेले का आनन्द तो लिया ही और बिछडने का भी जैसा कि पहले कभी सुना करते थे कि ऐसा अक्सर मेलों मे होता है……………याद रहेगा फिर तो इस बार का मेला……………बेहतरीन चित्रण्।

    ReplyDelete
  2. जमकर खरीदारी , १० फ्री पास और फोटोग्राफी करते हुए मेले में घूमना --वाह शास्त्री जी , यह तो मौज़ हो गई । यहाँ तो मेले अब लगते ही नहीं ।
    बढ़िया संस्मरण ।

    ReplyDelete
  3. सभी चित्र जानदार...........

    ReplyDelete
  4. बढ़िया टेम्पलेट सर जी!

    ReplyDelete
  5. वाह दूसरे फ़ोटो में पाबला जी को देख चकरा रिया हूं
    मिसफ़िट पर ताज़ातरीन

    ReplyDelete
  6. mele ka poora aanand hume to ghar baithe hi aa gaya.jeevant prastuti !

    ReplyDelete
  7. aadarniya sir,
    pahale to mujhe is mele ki jankaari hi nahi thi shayad mere parivaar me bhi kisi ko nahi ,par ab ho gai hai.
    sach me mele ka maja to roj -roj ke shoping se hat kar jo hota hai uska aanand to kuchh aur hi hota hai.aapke mela ghumne ke vivran ko padh kar -v-
    chitro ko dekh kar hamne bhi pure me le kamaja ghar baithe liya.
    aap bahut dino baad mere blog par aaye ,is baat ki bhi mujhe bahut khushi hui.
    hardik abhnandan karti hun---
    poonam

    ReplyDelete
  8. किसी का मेले मे खोना तो मेले का असली रंग है? ऐसे मेल अब शहरों मे कहाँ मिलते हैं और न इतनी सस्ती चीज़ें। बधाई आपको व भाभी जी को।

    ReplyDelete
  9. Shri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji

    ReplyDelete
  10. शास्त्री जी ,
    बहुत दिनों बाद हम भी मेला घूम लिए ! मेलों से हमारी परम्पराओं की खुशबू आती है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।