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Saturday 27 June 2009

‘‘इण्टर-नेट तुरन्त जोड़ दिया गया’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

ब्लागर मित्रों!
आज मैं टेलीफोन विभाग की की घाँधली का नमूना आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। मैंने 16-06-2009 को रुटीन में सारे टेलीफोन बिल जमा कर दिये थे। इसके बावजूद भी मेरा बॉड-बैण्ड का कन्क्शन काट दिश गया।
दो दिन तक टेलीफोन कार्यालय के चक्कर लगाते-लगाते जब दुखी हो गये तो एक नोटिस टाइप किया गया। आज सुबह जब नोटिस लेकर मैं टेलीफोन के अभियन्ता के पास गया तो आनन-फानन में बॉड-बैण्ड जोड़ दिया गया और मैं आपके बीच में फिर से आ गया ।

5 comments:

  1. ऐसा तो मेरे साथ न जाने कितनी बार होता है । हर बार वह यही कहते हैं - "कोई परेशानी होने पर सूचित तो करिये । और रही बात कटने की तो बिल आपने थोड़ी देर से जमा की होगी, या जमा होने की रिपोर्ट डाकघर से आने में विलम्ब हुआ होगा" (हमारे यहाँ बिल डाकघर में ही जमा होता है)।

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  2. दूरसंचार की दादागिरी तो जगजाहिर है.

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  3. चलो इनकी फ़ूँक निकालने वाला कोई तो है .. :-)

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  4. बीएसएनएल की एक परेशानी और है, वहाँ सेवाओं का विस्तार तो तेजी से हुआ है लेकिन उस के मुकाबले कर्मचारियों की भर्ती वह प्रक्रिया में अटक जाती है कुछ निर्णय में। कुछ उन के लेखा विभाग और तकनीकी विभागों के बीच संचार की कमी में। दूर संचार को यह सब ठीक करना चाहिए। वरना यही समझ बनती है कि मिनिस्टर और अफसर दूसरी दूर संचार कंपनियों को पनपाने के चक्कर में हैं। हो सकता है वहाँ से मानदेय की व्यवस्था भी होती हो।

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  5. बीएसएनएल के साथ ऐसी धांधली आम बात है !

    भाग-दौड़ और कहा-सूनी के बाद अगर
    समस्या दूर भी हो गयी तो उपभोक्ता ने
    जो कष्ट सहा ... दौड़-धुप में समय बर्बाद किया .. मानसिक तनाव झेला ..
    उन सब का जिम्मेदार कौन है ?


    आज की आवाज

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