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Saturday 6 June 2009

‘‘काश् गुस्से पर काबू रखते’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

‘‘क्रोधी व्यक्ति अकेला ही रह जाता है’’
अगली कड़ी-
इसके बाद शुरू होता है अहम और बदले की भावना का खेल।
इन शायर महोदय की पत्नी बड़ी कर्मठ थी। घर-गृहस्थी का एक-एक सामान उन्होंने बड़े मन से जुटाया था। फ्रिज, कूलर, वाशिंग मशीन आदि सभी सामान तो था घर में। लेकिन इन्हें वो रास नही आया।
धीरे-धीरे करके फ्रिज, कूलर, वाशिंग मशीन और सिलाई मशीन तक औने-पौने दाम में बेच डाली। ये अपने को साहित्यकार तो कहलाते ही थे। अतः इक्का-दुक्का लोग इनसे मिलने भी चले जाते थे। जिनमें अधिकांश तो केवल भेद लेने के लिए ही जाते थे।
गर्मी के मौसम में ठण्डे पानी की जगह टंकी का गरम पानी पीकर ही इनको अपनी प्यास बुझानी पड़ती थी। यार-दोस्तों को भी मजबूरी में वही पानी पीना पड़ता था। अकेला दम और दिनचर्या वही।
खाये बिना तो रहा नही जाता था। कुछ दिन तो होटल में, खाया पर रोज-रोज होटल के खाने से जब इनका मन ऊब गया तो घर पर ही खाना बनाने लगे।
इनकी श्रीमती जी ने जब इनका यह हाल सुना तो वह इन्हें मनाने के लिए आयीं लेकिन बात और बिगड़ गयी।
इन्होंने अपने क्रोधी स्वभाव के कारण मध्यस्थ लोगों को गवाह बना कर तीन बार तलाक-तलाक कह दिया।
अच्छा भरा-पूरा घर महज गुस्से के कारण तबाह हो गया।
अब लोग जब इनकी शायरी सुनते हैं तो उपहास करने से नही चूकते हैं।
जो उम्र नाती पोतों के बीच गुजरनी चाहिए थी, वो अब तन्हा रहकर अकेले गुजार रहे हैं।
तलाक के बाद पत्नी ने मेहर और गुजारे के लिए न्यायालय में केस दर्ज करा दिया है। प्रति माह लगभग आधी पेंशन तो बकीलों के पेट में ही चली जाती है।
काश् गुस्से पर काबू रखते तो यह दुर्दशा तो नही होती।

3 comments:

  1. bilkul sahi kahaa mayank ji gussa chandal ka roop hotaa hai prerk prasang hai aabhaar

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  2. bilkul sahi kahaa mayank ji gussa chandal ka roop hotaa hai prerk prasang hai aabhaar

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  3. krodh paap ka mool ...isiliye to kaha gaya hai.kroadh mein insaan na jaane kya kar jata hai use pata bhi nhi chalta.

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