कल भारत बन्द था। इसलिए हमने भी सोचा कि छुट्टी के दिन सैर-सपाटा ही हो जाए। तभी मेरे मित्र और सरस पायस के सम्पादक रावेंद्रकुमार रवि और उनकी पत्नी शोभा भी हमारे घर आ गये।
पिकनिक का नाम सुनकर वे भी हमारे सात हो लिए। श्रीमती जी भी तैयार हो गई और हमारी पोती प्राची भी कार में बैठ गई।
सबसे पहले हम लोग गये अपने नानकमत्ता स्थित आवास पर। जो बहुत दिनों से बन्द पड़ा था। ताला खोलकर हमने उसकी साफ-सफाई की और अब रुख़ किया नानकमत्ता साहिब गुरूद्वारे का!
थोड़ी देर के लिए हम गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी के दफ्तर में भी गये।।
अब हम लोगों ने गुरूद्वारे के परिसर में स्थित
प्राचीन पीपल के वृक्ष (पीपल साहिब) के भी दर्शन किये।
जिसके साथ में गुरूद्वारे का पवित्र सरोवर
अपनी पावनता से मन को लुभा रहा था।
गुरूद्वारे का लंगर हाल भी बहुत विशाल है।
यहाँ प्रतिदिन दोनों समय लंगर चलता है।
लंगर छकने के बाद हम लोग गये बाउली साहिब।
यहाँ गुरू नानक देव जी ने जमीन में फावड़ा मार कर
फाउड़ी गंगा की धारा प्रवाहित की थी।
सन्1965 में नानक सागर बाँध का निर्माण होने पर
यह स्थान अब नानकसागर के वीच में आ गया है।
मगर इसके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए
सरकार ने एक पुल बना कर इस स्थान के दर्शन करने की
सुविधा कर दी थी।
बाउली साहब के पास जाने पर सीढ़ियों के समीप ही
हमने अपनी कार पार्क कर दी।
यहाँ पर दो पिल्ले हमारे स्वागत में खड़े थे।
इस पिल्ले की आँखों में कितनी ममता है।
यह देख रहा है कि लोग यहाँ आयेंगे और इसे कुछ खाने को देंगे।
यहाँ पर यात्री नाव भी हैं जो नानकसागर के पार बसे
गाँव में लोगों को लाते पहुँचाते हैं।
इस नाविक की टूटी हुई नाव में पानी भर गया है
और यह डब्बे लेकर नाव में से पानी उलीच रहा है।
रावेन्द्र कुमार रवि इन नज़ारों को देख रहे हैं!
साथ में इनकी धर्मपत्नी शोभा भी हैं।
ये हैं बाउली साहिब के भीतर के दृश्य!
श्रीमती अमर भारती और शोभा
मेरे साथ मेरी श्रीमती जी और बीच में मेरी पोती प्राची।
चलो घर को चलते हैं।
नानक मत्ता साहिब
दिल्ली से 270 किमी,
मुरादाबाद से 140 किमी,
बरेली से 100 किमी दूर है
और मेरे घर खटीमा से
मात्र 15 किमी दूर है।
हैप्पी ब्लॉगिंग!
हिन्दी चिट्ठाकारी की जय हो!!
चलिए आप के साथ हमारा भी सैर हो गया !
ReplyDeleteनानक मत्ता साहब के बारे में जानकर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteनानक सागर क्या कोई झील है ?
aapke sath hamne bhi seur kar li Nankmatha ki.....dhanywad shastri ji
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत अच्छे तरीक़े से मयंक जी ने इस यात्रा का सचित्र वर्णन किया है!
--
इन चित्रों को देखकर लगा कि अभी वहीं पर हूँ!
--
मुस्कानों की निश्छल आभा!
Maza aa gaya ye sachitr warnan padhte hue!
ReplyDeleteआपने एक पूर्वपीठिका तैयार कर दी है। कभी आना हुआ तो ज़रूर दर्शन करना चाहेंगे।
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक होता है । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDelete