यह कविता मेरे पुराने ब्लॉग ‘‘उच्चारण" पर भी उपलब्ध है।
शब्दों के हथियार संभालो, सपना अब साकार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
करो वन्दना सरस्वती की, रवि ने उजियारा फैलाया,
नई-पुरानी रचना लाओ, रात गयी अब दिन है आया,
गद्य-पद्य लेखनकारी में शामिल यह परिवार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
देश-प्रान्त का भेद नही है, भाषा का तकरार नही है,
ज्ञानी-ज्ञान, विचार मंच है, दुराचार-व्यभिचार नही है,
स्वस्थ विचारों को रखने का, माध्यम ये दरबार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
सावधान हो कर के अपने, तरकश में से तर्क निकालो,
मस्तक की मिक्सी में मथकर, सुधा-सरीखा अर्क निकालो,
हार न मानो रार न ठानो, दंगल अब परिवार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
अंतरजाल पर आपके इस नए चिट्ठे का हार्दिक स्वागत है!
ReplyDeletedheron badhaayee aap ke is naye chiththey ke liye.aur asha hai ki yahan shbdon ka aisa hi dangal hoga jaisa aaap ne is kavita mein chaha hai..
ReplyDelete