लगभग 13-14 वर्ष पुरानी बात है। उन दिनों मैं पत्रकार परिषद का अध्यक्ष था। पास के गाँव चकरपुर में रात को 8 बजे के लगभग किसी तस्कर को कस्टम के लोगों ने पकड़ रखा था। लेन-देन की बात हो रही थी। तभी अमर उजाला का तत्कालीन पत्रकार अनीस अहमद वहाँ पहुँच गया। वह इस घटना की कवरेज कर रहा था कि एक कस्टम इंस्पेक्टर की नजर उस पर पड़ गयी। अनीस अहमद ने इस कस्टम अधिकारी को बताया कि मैं अमर-उजाला का स्थानीय पत्रकार हूँ। बस इतना सुनना था कि कस्टम अधिकारी ने अपने सिपाहियों की सहायता से जीप में डाल लिया और जंगल की ओर जीप मोड़ दी। रात का अंधेरा था। अनीस अहमद बिल्कुल युवा था वह मौका मिलते ही जीप से कूद गया और जंगल में छिपते-छिपाते नेपाल के रास्ते होते हुए सुबह 4 बजे मेरे निवास पर पहुँचा। उसकी पूरी कहानी सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये। मैंने अनीस को अपने घर में पनाह दी या यूँ कहे कि छिपा लिया। प्रातःकाल होते ही खटीमा थाने में अनीस को कस्टम अधिकारियों द्वारा अगवा करने की रपट लिखा दी गयी। अब छान-बीन शुरू हुई। कस्टम अधिकारियों को थाने में तलब कर लिया बीच सायंकाल मैंने अन्य पत्रकारों के सहयोग से अनीस का मेडिकल कराया। उस के शरीर पर 15 चोटों के निशान थे। फिर अनीस को थाने में पेश कर दिया गया। पुलिस अनीस की निशानदेही पर उस स्थान पर भी गई, जहाँ अनीस जीप से कूद कर भागा था। अन्ततः 2 कस्टम अधिकारियों को जेल भेज दिया गया। इस तरह से एक एनकाउण्टर होने से बच गया। |
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सियासत और पुलिस के दाँव पेंच का कुछ
ReplyDeleteपता नही चल पता है,उन्हे खुद ही पहचान पाना मुश्किल लगता है की
मुजरिम कौन है..वैसे
बहुत सी नेक काम किया आप ने ,
chalo !!
ReplyDeleteshukr hai !!
यूँ भी हो जाता है कभी
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तख़लीक़-ए-नज़र
असली मुजरिमो को तो नेता लोग बचा लेते है, ओर मरते है हम आप जेसे सीधे लोग.
ReplyDeleteअनीश भाई खुदा का शुक्र अदा करो.
फ़र्जी एनकाउण्टर तो अब आम बात हो गयी है। सुना है पुलिसवालों को एन्काउण्टर करने के बाद सरका खूब पुरस्कृत करती है। ऑउट ऑव टर्न प्रोमोशन भी मिलता है। अनीस भाई उनके काम नहीं आ सके, इसका मलाल उन्हें जीवन भर रखना चाहिए।।
ReplyDeleteएक निर्दोष की ह्त्या होने से बची और साथ ही अपराधी सलाखों के पीछे गए, यह जानकार खुशी हुई. काश थोड़े ही और नागरिक अन्याय के खिलाफ खड़े होने का साहस कर पाते.
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