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Tuesday 2 March 2010

“सामान सौ बरस का, पल की खबर नही!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“मत्यु का समय निश्चित है!”

आज दो घटनाक्रम सुनाने का मन है-
1- पाण्ड्वों के अज्ञातवास के समय बियाबान जंगल में जब पाँचों भाइयों को प्यास ने सताया तो युधिष्ठिर ने पानी लाने के लिए क्रम से सभी भाइयों को भेजा परन्तु एक भी लौटकर नही आया!
अब स्वयं युधिष्ठर पानी लाने और भाइयों की खोज में निकल पड़े!
कुछ दूर पर उन्हें एक स्वच्छ जल का सरोवर दिखाई दिया! सरोवर के समीप जाने पर उन्होंने देखा कि चारों भाई यहाँ मूर्छित पड़े हुए हैं!
युधिष्ठर को भी बहुत जोर की प्यास लगी हुई थी अतः वब जैसे ही जल की ओर बढ़े- एक यक्ष की आवाज उन्हे सुनाई दी!
”सावधान! पानी को हाथ मत लगाना! पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो! बाद में पानी लेना! अन्यथा तुम्हारा भी हाल तुम्हारे भाइयों जैसा हो जायेगा!”
युधिष्ठर रुक गये और यक्ष से कहा कि प्रश्न पूछिए-
यक्ष ने युधिष्ठर से बहुत से प्रश्न किये जिनमें से एक प्रश्न था- “किम् आश्यर्यम्?” (आश्चर्य क्या है?)
युधिष्ठर ने इसका उत्तर दिया- “संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि प्रत्येक जीवित प्राणी अपने को अमर समझता है!”

2- एक बार मृत्यु के देवता यमराज किसी कार्यक्रम में पधारे!
जब वे अपने आसन की ओर जा रहे थे तो उनकी नजर कबूतर के एक जोड़े पर पड़ी! कबूतरों को देखकर वे बहुत जोर से हँसे!
गरुड़ ने जब यह देखा तो मन में सोचा कि इन कबूतरों का अन्त समय आ गया है! यदि इनकी मृत्यु की घड़ी टल जाये तो अच्छा है!
गरुड़ की उड़ने की गति कई हजार मील प्रति घण्टा होती है। अतः गरुड़ जी इन कबूतरों को लेकर कैलाश मानसरोवर की ओर चले गये। वहाँ इ्न्होंने कबूतरों को एक गुफा में छिपा दिया और तत्काल सभा मे लौटकर आ गये!
कार्यक्रम समाप्त होने पर जव यमराज उठकर जाने लगे तो देखा कि कबूतर अपने स्थान पर नहीं हैं! इससे यमराज चिन्तित हुए तो अब गरुड़ जी बहुत जोर से हँसे!
यमराज ने गरुड़ से पूछा कि तुमने कबूतरों को कहाँ छिपाया है?
गरुड़ बोले- महाराज! जब तक आप उन तक पहुँचोगे तब तक मृत्यु की घड़ी टल चुकी होगी! इसलिए मैंने उन्हें कैलाश मानसरोवर के पास एक गुफा में छिपा दिया है!
इस पर यमराज बोले- “गरुड़ जी आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी है। इन कबतरों की मृत्यु तो कैलाश मानसरोवर के समीप पड़ने वाली गुफा में ही लिखी हुई है!
मैं तो सोच रहा था कि इन कबूतरों को कैसे गुफा तक ले जाऊँ!”
अब गरुड़ अपना माथा पकड़ कर बैठ गये!
कहने का तात्पर्य यह है कि मृत्यु की घड़ी तथा स्थान पहले से ही निर्धारित होता है! मगर प्राणी को इसका ज्ञान नही होता है! क्योंकि वह तो अपने को अमर समझता है!
इसीलिए तो किसी शायर ने कहा है-
“सामान सौ बरस का, पल की खबर नही!”

15 comments:

  1. Bahut accha drashtant ,kahanee ke madhyam se mila par kaliyug hai sab janate bhee insaan bhoutik sukho kee aur bhag raha hai chintan manan ke liye samay kanha ?

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  2. किम आश्‍चर्यम्

    उसकी ब्‍लॉग की पोस्‍ट पर

    मेरी पोस्‍ट से टिप्‍पणियां ज्‍यादा कैसे ?
    प्रत्‍येक ब्‍लॉगर अपनी पोस्‍ट को

    अपनी संतान समान समझता है

    तो उसके गुण तो नजर आते हैं

    पर दोष नहीं।



    जो वास्‍तव में अच्‍छी पोस्‍ट है

    वहां पर पाठक और टिप्‍पणी

    और पसंद तीनों स्‍वयं ही

    बहुतायत में आयेंगी ही

    चाहे उन्‍हें बुलाया जाये
    अथवा नहीं।

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  3. सत्य वचन शास्त्री जी।
    इसलिए भविष्य की चिंता में अपना आज जाया नहीं करना चाहिए।
    वर्तमान ही सत्य है ।
    शुभकामनायें।

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  4. Adaraneeya sir,
    Sadar abhivadan.
    Har bar kee tarh is bar bhee Bahut rochak aur gyanvardhak post hai apakee..
    Apako evam parivar ke samast sadsyon ko bhee holee kee hardik mangalkamnayen.
    Poonam

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  5. ज्ञान से ओतप्रोत सार्थक कहानी...बढ़िया लगी..शास्त्री जी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

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  6. Ye to paramsatya hai lekin manushya is stya ko janate hue bhi anjaan bana rahata hai ....anydhta is param satya ka ko palapal yaad rakhane wale sadachar aur satkarm na karate rahate...!!
    Accha chintan hai...Dhanywaad

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  7. सुन्दर और सार्थक पोस्ट
    साधुवाद

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  8. बढ़िया कथा सुनाई..

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  9. सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं.
    वाह, क्या बात है! कितनी सहजता से आपने महाग्रंथ का उद्धरण दे कर हमें जीवन की सच्चाई से रूबरू कराया!
    ...आभार.

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  10. waakai pal ki khabar nahi hai....

    chochaley duniya bhar ke kerte hain hum sab log!

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  11. आदरणीय शास्त्रीजी !

    जिंदगी में चलते चलते यूँ ही एक ऐसा मसीहा मील गया, जिसे देख मन में ऐसा भाव आया की एक मशाल हाथ आ जाये और सारी दुनिया से बताऊँ मैंने एक मसीहा पाया है अभी अभी तो प्रयास चालू ही किया है आपका सहयोग चाहिए !

    http://thakurmere.blogspot.com/

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  12. bahut hi sundar drishtant dekar satya ka abhas karaya hai bas ise insaan samajh le to kya baat ho.

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  13. घरवाले और मित्र मण्डली कहती है कि नीरज, अकेला घूमने मत जाया कर.
    क्यों?
    अगर कुछ हो गया तो, मर-मरा गया तो...
    तो अगर ना जाऊं तो क्या आप मौत को रोक लेंगे?

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  14. सत्य वचन
    ...तो अब से नच लो, गा लो, मौज मना लो...

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  15. बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने और बिल्कुल सही कहा है! बहुत बढ़िया लगा!

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