समर्थक

Saturday 9 May 2009

‘‘बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर विशेष’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

बुद्धं शरणं गच्छामि,
बुद्ध की शरण में जाओ, अर्थात् बुद्धि की शरण में जाओ।

धम्मं शरणं गच्छामि,

धर्म की शरण में जाओ, अर्थात् कर्तव्य से विमुख मत होओ।

महाकवि तुलसी दास जी ने भी कहा है-

‘‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,
जो जस करहि सो तस फल चाखा।’’

संघं शरणं गच्छामि,

संगठन की शरण में जाओ, संगठित होकर कार्य करो।

उपरोक्त इन तीन वाक्यों में ही पूरे विश्व का ज्ञान निहित है।

आज यदि संसार का प्रत्येक व्यक्ति,
इन तीन वाक्यों के मर्म को समझ ले तो उसका कल्याण हो सकता है।

मैं बड़े श्रद्धा और भक्ति से
आज बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर
सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखलाने वाले गौतम बुद्ध को
अपने आदर के सुमन अर्पित करता हूँ।

4 comments:

  1. gautam budh ke liye hamare sharda suman bhi arpit hain bahut badiya post hai aabhar

    ReplyDelete
  2. मैं बड़े श्रद्धा और भक्ति से
    आज बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर
    सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखलाने वाले गौतम बुद्ध को
    अपने आदर के सुमन अर्पित करता हूँ।
    शास्त्रीजी, बहुत ही खुबसुरत मगल कामानाऐ भगवान बुद्ध के माध्यम से।

    हे प्रभु यह तेरापन्थ, मुम्बई टाईगर कि तरफ से भी
    श्रद्धा और भक्ति से सुमन अर्पित

    ReplyDelete
  3. गौतम बुद्ध का इतना सुंदर चित्र मैंने पहले कभी नहीं देखा!
    आपके साथ-साथ मैं भी अपने आदर के सुमन उनके श्रीचरणों में अर्पित करता हूँ!

    ReplyDelete
  4. gautam buddh ko hamare shraddha suman arpit.........bahut badhiya.

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।