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Friday 1 May 2009

"विनम्रता, प्रेम और पवित्रता" डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

रुक्मणि के दो जुड़वा बच्चे थे, एक लड़का और एक लड़की।

लड़के का नाम ललित था और लड़की का नाम लता था।

शाम को ये दोनों भाई बहिन अपने घर के बगीचे में घूमने के लिए निकल जाते थे।

एक दिन जब ये बगीचे में घूम रहे थे।

अकस्मात् ललित लाल गुलाब के फूल के पास जाकर ठहर गया

और लता से कहने लगा- ‘‘बहन! मुझे ये लाल गुलाब का फूल सबसे सुन्दर लग रहा है।’’

पास ही लिली का पौधा भी था।

लता लिली के फूल को देख कर बोली - ‘‘भइया! मुझे तो लिली का फूल ही

सबसे सुन्दर लग रहा है। इसके सामने तो दूसरे फूल ठहरते ही नही।’’

अब ललित बोला- ‘‘बहन! पास में ही ये बनफ्सा का फूल है।

इसकी महक तो अच्छी है परन्तु रंग कुछ खास नही है।’’

तभी उनकी माता रुक्मणि भी बगीचे में आ गयी।

उसने देखा कि दोनों बहन-भाई में बहस छिड़ी हुई थी।

माँ ने दोनों की बात सुनी और कहने लगी- ‘‘सुनो- ये जो तीनों फूल तुम लोग

देख रहे हो- इनमें बनफ्सा का फूल और इसका रंग विनम्रता का प्रतीक है।’’

अब ललित माँ से बोला- ‘‘और माँ ये गुलाब का फूल लाल फूल है यह किसका प्रतीक है?’’

रुक्मणि बोली- ‘‘बेटा! ये गुलाब का फूल प्रेम का प्रतीक है।’’

अब लता बोली- ‘‘और माँ मेरा ये लिली का फूल किसका प्रतीक है?’’

रुक्मणि बोली- ‘‘बेटी! ये लिली का फूल पवित्रता का प्रतीक है।’’

रुक्मणि ने दोनो बच्चों को प्यार से पास बुला कर कहा-

‘‘ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के ये तीन उपहार हैं।

विनम्रता, प्रेम और पवित्रता को कभी अपने से दूर मत करना।’’

6 comments:

  1. bahut hi shikshaprad laghukatha hai........sirf yahi kahne se kaam nhi chalega balki ise apne jeevan mein bhi utarna hoga.
    bahut hi badhiya.

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  2. डाक्टर साहिब /प्रकृति के तीन उपहारों को कितने रोचक तरीके से बाल कथा के रूप में वर्णन किया गया है /अच्छा लगा

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  3. Badi prernadaayak kahani sunaaee aapne.

    laajwaab blog banaya hai aapne. badhaai

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  4. काश, सब इन तीनों उपहारों का मूल्य समझ पायें:

    विनम्रता, प्रेम और पवित्रता

    -बहुत प्रेरणादायी कथा.

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  5. शब्दों के दंगल पर ऐसी लघुकथा पढ़कर सुखद अनुभूति हुई!

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  6. आपके सुंदर पंक्तियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
    बहुत बढ़िया लघुकथा लिखा है आपने !

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